ओ३म्
-वैदिक साधन आश्रम तपोवन का ग्रीष्मोत्सव सोल्लास आरम्भ-
“ईश्वर की उपासना वा ध्यान करने से ज्ञान की प्राप्ति होने सहित आत्मा की उन्नति भी होती हैः पं. नरेशदत्त आर्य”
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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का ग्रीष्मोत्सव आज श्रद्धा के वातावरण में आरम्भ हुआ। आज प्रातः 7.00 बजे से चार यज्ञ-वेदियों पर यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा वैदिक विद्वान श्री रवीन्द्र कुमार शास्त्री जी थे। यज्ञ में मन्त्रोच्चार कन्या गुरुकुल, नजीबाबाद की स्नातिका आचार्या भावना जी एवं उनकी एक सहयोगी छात्रा ने किया। ब्रह्मा जी के साथ मंच पर आगरा से पधारे प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पं. उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी, श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी, पं. नरेश दत्त आर्य जी, पं. नरेन्द्र दत्त आर्य एवं श्री रमेश चन्द स्नेही आदि थे। लगभग डेढ़ घंटे तक यज्ञ हुआ जिसमें चारों वेदियों पर उपस्थित 30 से अधिक यजमानों ने घृत एवं साकल्य की आहुतियां यज्ञाग्नि में प्रदान कीं। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य रवीन्द्र कुमार शास्त्री जी ने यज्ञ में बोले गये मन्त्रों में कुछ मन्त्रों के तात्पर्य भी श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किये।
यज्ञ के ब्रह्मा पं. रवीन्द्र कुमार शास्त्री जी ने कहा कि सुक्रतो उस मनुष्य को कहते हैं जो यज्ञ आदि श्रेष्ठ कर्मों को करता है। शास्त्री जी ने कहा कि विद्या आदि शुभ गुणों का धारण एवं परोपकार से युक्त आचरण ही प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिये। उन्होंने कहा कि बेटियों को जो धन दिया जाता है वह उन्हें अवश्य दिया जाना चाहिये। ऐसा करना धन का सदुपयोग करना है। उन्होंने अपने जीवन में घटे ऐसे उदाहरण भी सुनायें जब एक पिता ने अपनी सारी सम्पत्ति अपने पुत्र को वसीयत कर दी तो उस पुत्र ने अपनी बहिन को अपने हिस्से में से पांच बीघा भूमि अपनी बहिन को देने की घोषणा अपने पिता की श्रद्धांजलि सभा में की। आचार्य जी ने उस भाई की अपनी बहिन के प्रति इस प्रकार की सद्भावना की प्रशंसा की और कहा कि हमें भी इस उदाहरण से प्रेरणा लेनी चाहिये। आचार्य रवीन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि हम जीवन में जितने अधिक शुभ कर्म करते हैं उतना ही हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं और सफलताओं को प्राप्त करते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हमें समाज को अपना परिवार समझना चाहिये और समाज के प्रति इस परिवार की भावना से ही सबके प्रति समान व अच्छा व्यवहार करना चाहिये।
यज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न होने के बाद प्रसिद्ध भजनोपदेशक पं. नरेश दत्त आर्य जी के भजन हुए। उन्होंने पहला भजना प्रस्तुत किया। इस भजन के बोल थे ‘उठ अब तो ईश्वर का गुणगान कर ले, प्रभु प्यारे प्रीतम का अब तो ध्यान कर ले।’ पं. नरेश दत्त आर्य जी ने प्रश्न उठाया कि ईश्वर की उपासना से मनुष्य को क्या वस्तु प्राप्त होती है? उन्होंने गाकर कहा कि ‘क्या कहें क्या भक्त पाता है प्रभु के ध्यान से, कुछ अलौकिक रत्न पाता है प्रभु के ध्यान से। ज्ञान के आलोक से जगमगाता है हृदय, रंग बिरंगे फूल खिलते और संशयों का नाश होता है ईश्वर का ध्यान करने से।’ उन्होंने आगे कहा कि ईश्वर का ध्यान करने से मनुष्य को साधना का मार्ग मिलता है और उसका आध्यात्मिक उत्थान भी होता है। आचार्य नरेश दत्त आर्य जी ने कहा कि ईश्वर की उपासना व ध्यान करने से ज्ञान की प्राप्ति होने सहित आत्मा की उन्नति भी होती है। मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है और इससे मनुष्य को सुखों की प्राप्ति और आयु की वृद्धि भी होती है।
कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध विद्वान श्री शैलेष मुनि सत्यार्थी, हरिद्वार ने किया। उन्होंने कुशलता से संचालन करने के साथ अनेक प्रेरक वचन भी कहे जिन्हें जीवन में आचरण में लाने से जीवन की उन्नति के द्वार खुलते हैं। इसी के साथ आज ग्रीष्म उत्सव का पहला प्रातःकालीन सत्र समाप्त हुआ। इसके बाद ध्वजारोहण हुआ और तत्पश्चात 10 बजे से 12.00 बजे तक आश्रम के सभागार में ‘राष्ट्र रक्षा सम्मेलन’ भव्य रूप में सम्पन्न हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य