थोड़ा निभाह हमने खिज़ाँ से जो कर लिया, फिर यूं हुआ के हम भी बहारों से कट गए,,,,,

 


अनुराग लक्ष्य, 9 अप्रैल
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
हिन्दुस्तानी शायरी में जब ग़ज़लों का जिक्र होता है तो हिन्दी ग़ज़ल, उर्दू ग़ज़ल की बात ज़रूर होती है । मेरा मानना है कि ग़ज़ल वही है जो अपनी खुशबू बिखेरती हुई दिलों में उतर जाए। और इस मुकाम पर एक शायर मुंबई की सरजमीन पर है जिसने अपने म्यारी कलाम से अपनी एक खास जगह बनाई है दुनिया ए अदब जिसे राजेश उन्नवी के नाम से जानती और पहचानती है। आइए पढ़ते हैं राजेश उन्नवी की ग़ज़ल के कुछ अशआर,,,,,,
चाहा जो चाँद को तो सितारों से कट गए ।
मझधार से मिले तो किनारों से कट गए ।m

वो शख़्स मेरी आँखों से ओझल हुआ है यूँ
जितने हसीं थे सारे नज़ारों से कट गए ।

थोड़ा निबाह हमने ख़िज़ाँ से जो कर लिया
फिर यूँ हुआ के हम भी बहारों से कट गए ।

जो दे रहे थे ख़ूब दिलासा परिंद को
सारे दरख़्त उनके इशारों से कट गए ।

हालात घर के वो थे के परदेस आ गए
मजबूरियों में आँख के तारों से कट गए ।

सजती थी फ़र्द शाम को यारों की महफ़िलें
कम्बख़्त इश्क़ क्या हुआ यारों से कट गए ।