वोह अपनी ईद में तुझको अगर बुलाता है, तो तेरी होली में अब भी गुलाल लेता है, मिटाने के लिए नफ़रत दिलों से इंसाँ के, यहां तलक कि वोह पूजा की थाल लेता है, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,

वोह अपनी ईद में तुझको अगर बुलाता है, तो तेरी होली में अब भी गुलाल लेता है, मिटाने के लिए नफ़रत दिलों से इंसाँ के, यहां तलक कि वोह पूजा की थाल लेता है, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,
अनुराग लक्ष्य 16 मार्च
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता।
कुदरत ने हज़ारों साल पहले पहाड़ों की बुलंदी झरनों के तबस्सुम और फरिश्तों के नूर को इकट्ठा करके जिस मुकद्दस रिश्ते को जन्म दिया था, उसी का नाम है इंसानियत। और उसी इंसानियत और भाईचारगी को आम करने के उद्देश्य की पूर्ति करने में , काव्य सृजन परिवार , बीती शाम पूरी तरह कामयाब रही। जिसमें दो दर्जन से अधिक कवियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया, साथ सम्मान समारोह की भव्यता भी देखने को मिली।
यह कार्यक्रम मौलाना अबुल कलाम आजाद हाल अडानी एनर्जी के पास सांताक्रुज ईस्ट मुम्बई में आयोजित किया गया जिसमें कवि सम्मेलन के साथ साथ होली मिलन एवम् सम्मान समारोह का आयोजन भी किया गया है।
होली मिलन समारोह पर सम्मानित लोगों को स्मृति चिन्ह के साथ सम्मानित किया जाता है। इस वर्ष जिन साहित्य मनीषियों को सम्मानित किया गया उनमें प्रमुख रूप से, साहित्य के क्षेत्र में डॉ ओमप्रकाश तिवारी, सूर्यकांत शुक्ल, संदीप यादव, नीलिमा पाण्डेय, सांस्कृतिक क्षेत्र अनूप विंदल,-साहित्य सेवा के क्षेत्र में रीमा यादव,-समाज सेवा के क्षेत्र म जिलाजीत यादव, -पत्रकारिता के क्षेत्र मे लक्ष्मीकांत कमलनयन, -वैद्यकीय क्षेत्र में दीपनारायण शुक्ल को प्रदान किया गया।
सम्मान समारोह के बाद अपने खास अंदाज़ में संचालन करने वाले सलीम बस्तवी अज़ीज़ी को मंच संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसमें एक के बाद एक कवियों ने अपनी ग़ज़लों और गीतों से महफिल को खुशनुमा बना दिया।
शुरूआत ओम प्रकाश तिवारी की रचना ,, हम कविता को कम रचते हैं जीते उसको ज़्यादा,
जीवन का संतुलन हमारे दमखम सीधा सादा ,, सुनकर मंच को नई ऊंचाई प्रदान की। तदोपरांत युवा कवि संदीप यादव ने अपनी ग़ज़ल के शेर ,, किया प्रहलाद को बेज़ार फिर इस बार होली में,
शराबों की रही भरमार फिर इस बार होली में ,, ने सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार किया जिसे उपस्थित श्रोताओं ने बेहद सराहा।
इसी क्रम मे गीतकार राम जी कनौजिया ने ,, भूल कर भी कभी न आना कीजिए, बात बन जाए फिर से बना लीजिए, यह ज़िंदगी फिर दुबारा मिले न मिले, वोह रूठ जाएं तो फिर से मना लीजिए,,सुनकर सबको बाग बाग कर दिया। इसी क्रम मे डॉक्टर प्रमोद पल्लवित की रचना ,, मज़हब को हथियार बनाकर चलते हैं, उनके यह सब कर्म बहुत ही खेलते हैं,, सुनाया।
इसी तरह कवि सूर्य कांत शुक्ल की रचना, फागुन के महीने में, इक आग लिए सीने में , रंगों में किसी के रंग जा, फिर देख मज़ा जीने में,, और कवि अवधेश यदुवंशी ने, आओ कुछ तुम कहो, आओ कुछ हम कहें, सुना साली हमार, सुनाकर अपनी मौजूदगी का भरपूर एहसास कराया।
इसी क्रम मे शायरा पूनम विश्वकर्मा ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया अपने इन अशआर के साथ ,, जो मिला है मुझे जुदा बनकर, काश मिल जाए वह मेरा बनकर, सोच उस शख़्स की बुलंदी को, बिछ गया सबका रास्ता बनकर,,
इसी क्रम मे श्रीधर मिश्र आत्मिक ने, प्रभु दीन दयाल कृपा करिए, जलें सब होली में बुरे संस्कार,,सुनकर होली की महत्ता का बखान किया।
संचालन कर रहे शायर सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ने अपने कई मुक्तकों और मुहब्बत भरे नग़्मों से सबके दिलों में उतर गए इन पंक्तियों के साथ,
,,, वोह अपनी ईद में तुझको अगर बुलाता है तो तेरी होली में अब भी गुलाल लेता है। मिटाने के लिए नफ़रत दिलों से इंसाँ के, यहां तलक कि वोह पूजा की थाल लेता है ।।
इसी के साथ वरिष्ठ कवि हौसला प्रसाद अन्वेषी ने भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराया अपने इस कलाम के साथ,
, सोच समझकर कदम उठाओ, कहां जा रहे हमें बताओ, जंगल जंगल झाड़ी झाड़ी, जाओ लेकिन हमें बताओ।
और अंत में अध्यक्षता कर रहे शारदा प्रसाद की रचना ,, फागुन मास बसंत है आया, प्रकृति में छाया है मधु भाषा,, सुनाया। इनके अलावा अभय चौरसिया, पंकज अमर, आनंद गिरी, लक्ष्मी यादव ओजस्विनी, अनूप कुमार द्विवेदी इत्यादि सहित कई अन्य कवियों ने भी अपनी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं । कार्यक्रम के अंत में संस्था काव्य सृजन परिवार के संस्थापक और आयोजक पंडित शिव प्रकाश जौनपुरी ने सभी आगंतुकों का आभार प्रकट किया। साथ ही कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ किया।