उजड़ते घर-बिछुड़ते परिवार बिखरता राष्ट्र* आचार्य सुरेश जोशी

🕉️ ओ३म् 🕉️
*उजड़ते घर-बिछुड़ते परिवार बिखरता राष्ट्र*
🏵️ *उजड़ते गांव*🏵️
पूर्व जन्म के उत्तम कर्मों से देवभूमि उत्तराखंड हिमालय की गोद में दिब्य मानव शरीर मिला। धर्मात्मा माता -पिता व संस्कारित परिवार मिला। आंगन में *अखरोट,आड़ू, पुलम,आलूबुखारा,खुमानी जेंसे रसभरे,पौष्टिक फलदार वृक्ष पृथ्वी माता ने दिये।कृषि हेतु उच्चकोटि के बैल व पांच-छ: गौ-माताएं* मधुर व औषधियुक्त दूध वाली विरासत में प्राप्त हुई।
शिक्षा हेतु ग्राम के निकट ही मातृभाषा में विद्यादान हेतु प्राथमिक पाठशाला से लेकर उच्चतम इंटरमीडिएट कालेज मिला। अधिक मात्रा में ग्रामवासी सम वयस्क वाले *अग्रज,अनुज व मित्र मिले* त्याहारों की रौनक,भजन मंडली का अनूठा संगम मिला। मगर संसार की चकाचौंध व अर्थ प्रधान युग में जीने की लालसा ने मेरा ही नहीं मेरी पीड़ी के सभी लोगों को घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। माता-पिता,परिवार,संस्कृति,सभ्यता को अर्थ प्रधान युग ने झटके में अलविदा कर दिया।जैंसे पहाड़ की नदियां वर्षा बंद होते ही सूख जाती है वैंसे आधुनिता को बनाये रखने के लिए युवाओं को घर छोड़ने पड़े।
केवल उत्तराखंड ही नहीं *पूर्वांचल,मध्यांचल,विध्यांचल,पश्चिमांचल,बुंदेलखंड सभी ग्रामीण अंचलैं के बालकों ने *धन की दोड़ में बने रहने के लिए मातृभमि व मातृभाषा* दोनों छोड़नी पड़ी। खेत-खलियान वीरान पड़े हैं।पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ नहीं रह गये। पशु धन विशेषकर गो-वंश समाप्त है। घरों में ताले पड़े हैं। *इसी का नाम है *उजड़ते घर*
🏵️ *बिखरता परिवार*🏵️
जब घर का एक बालक शहर आया।यहां उसने व्यापार किया।नौकरी की।उद्योग चलाये और पैंसा कमाकर गांव गया। *मुख में पान,होठों पै सिगरेट,आंखों पे काला चस्मा,हिप्पी कट बाल,सूंट और बूंट,कंधे पै बैग,हाथ में घड़ी व अटैची,अधकचरी अंग्रेजी में डायलाग* देखकर गांव का हर नवयुवक जो रिश्ते में भाई-बहन,मित्र,संबंधी थे सब हक्के-बक्के रह गये। गांव गली में उसी पढ़े-लिखे अंग्रेजी बाबू की जय-जयकार होने लगी।इसे देखकर हर युवक-युवती ने शहर की ओर मुख किया। परिणाम एक भाई दिल्ली,दूसरा मुंब ई,तीसरा,पुणे,चौथा,मद्रास आदि शहरों में बसनू लगे। श्रीराम को बनवास हुआ तो लक्ष्मण ने साथ दिया।भरत ने मर्यादा निभाई एकदिन फिर अयोध्या सज ग ई।मगर यहां तो परिवार के परिवार शहरों में यत्र,तत्र,सर्वत्र रहने लगे। पति-पत्नी माता-पिता परीवार की उपेक्षा करके लक्जरी जीवन जीने को ही विकास कहने लगे।
पूरे समय साथ रहने वाले भाई भी अलग-अलग घर बनाकर एक-दूसरे के मेहमान हो गये।इसी का नाम है *विछुड़ते परिवार*।
🏵️ *बिखरता राष्ट्र*🏵️
हम जैंसा बीज बोते हैं फसल भी वैंसी ही होती है। हम अपने भौतिक जीवन में इतने रम गये कि हमनू अपने माता पिता की उपेक्षा की शहरों मे निवास किय।बूढ़े माता पिता। ग्रामीण संस्कृति को त्यागने का इतना भयंकर परिणाम हुआ कि *हमारे शहर के बच्चे भी हमें शहरों में छोड़ इंग्लैंड,अमेरिका,कनाडा,स ऊदी अरब,आस्ट्रेलिया,आदि विदेशी देशों मे* अधिक विलासिता युक्त जीवन को बिताने चले गये।
आज परिणाम यह है कि *पहली पीढ़ी के लोग गांव में अकेले है।दूसरी पीढ़ी के लोग शहरों में और तीसरी पीड़ी के लोग विदेशों में* एकांकी जीवन बिता थहे हैं।सब लोग एक-दूसरे पर दोषारोपण कर समय व्यतीत कर रहे हैं। जिस भारत में *श्रवण कुमार,श्रीराम जैंसे मातृ-पितृ भक्त,राष्ट्र भक्त थे* आज उनकी पीड़ियां अपने ही देश में *वृद्धाश्रमों* में मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं।इसी का नाम है *बिखरता राष्ट्र*।
आज वो कवि भी नहीं रहे जो कभी देश को जगाने के लिए कहते थे।
*हे ग्राम देवता नमस्कार!*
*सोने चांदी से नहीं किंतु मिट्टी से किया है तूने प्यार!!*
कहां गये वो भाई जो कभी विदेसियों की प्रशंसा करने वाले अपने भाई लक्ष्मण में राष्ट्र भक्ति का भाव करके कहते थे!
*अपि स्वर्णमयी लंका,न मे लक्ष्मण रोचते!*
*जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादsपि गरीयसी!*
अब तो बंग्लादेश जिसे कभी हमने आजादी का स्वाद चखाया था वो भी कहने लगा है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण की गीता हमारे देश में नहीं चलेगी।देश के ही *जयचंद सत्ता की भूख में उनको ही प्रश्रय दे रहे हैं जो रात दिन -राष्ट्र की जड़े* खोद रहे हैं।
यदि यही सब कुछ चलता रहा तो *घर,परिवार,राष्ट्र* सब समाप्त हो जायेगा। इनके समाप्त होते ही *सत्य सनातन वैदिक संस्कृति* पर पाश्चात्य कुकृति हावी होगी!
गांवों की तरह आज *दिल्ली,मुंब ई,लखन ऊ,गुजरात जैंसे महा नगरों* में भी हिंदुओं के गगन चुंबी भवन वीरान नजर आ रहे हैं। विदेशों मे जो प्रवासीय भारतीय हैं वो *मांस-मदिरा-लव जिहाद एवं भोग-विलास में आकंठ डूब* चुके हैं।इसका अब एक ही समाधान है।
*अतीत भी महान था।भविष्य भी महान है।*
*संभाल लो उसे अगर जो अभी वर्तमान है*
उजड़ते घर,बिछुड़ते परिवार व बिखरे राष्ट्र को संभालने का एक ही नारा है।। *लौट चलो!गांवों की ओर!!*
आचार्य सुरेश जोशी
वैदिक प्रवक्ता
*सचल कार्यालय*
🪷 आगरा कैंट 🪷

गोरखपुर ओखा एक्सप्रेस बी-५२-५३
समय रात्रि ७.३० मिनट।