आत्मा में अनंत शक्ति है स्वामी विवेकानंद की दृष्टि में आत्मा में अनंत शक्ति है वास्तव में कभी किसी विचार ने किसी दूसरे को नहीं सिखाया हम में से प्रत्येक को अपने आपको सिखाना होगा बाहर के गुरु तो केवल सुझाव या प्रेरणा देने वाले कारण मात्र हैं जो हमारे अंतस्थ गुरु को सब विषयों का मर्म समझने के लिए उद्बोधित कर देते हैं तब फिर सब बातें हमारे ही अनुभव और विचार की शक्ति के द्वारा स्पष्ट तर हो जाएंगी और हम अपनी आत्मा में उनकी अनुभूति करने लगेंगे यह समूचा विशाल वटवृक्ष जो आज कई एकड़ जमीन घेरे हुए हैं उस छोटे से बीच में था जो शायद सरसों के दाने के अष्टमांश से बड़ा नहीं था वह सारी शक्ति राशि उस बीज में निबद्ध है हम जानते हैं कि विशाल बुद्धि एक छोटे से जीवाणु कोष में सिमटी हुई रहती है यह भले ही एक पहेली सा प्रतीत हो पर यह है सत्य हममें से हर कोई एक जीवाणु कोष से उत्पन्न हुआ है और हमारी सारी शक्तियां उसी में सिकुड़ी हुई थी स्वामी विवेकानंद के विचार से हम यह नहीं कह सकते कि वह खाद्यान्न से उत्पन्न हुई है क्योंकि यदि हम अन्न का एक पर्वत भी खड़ा कर दें तो क्या उसमें से कोई शक्ति प्रकट होगी शक्ति वही थी भले ही वह अव्यक्त या प्रसुप्त रही हो पर थी वह उसी तरह मनुष्य की आत्मा में अनंत शक्ति निहित है चाहे वह यह जानता हो या ना जानता हो इसको जानना इसका बोध होना ही इसका प्रकट होना है स्वामी विवेकानंद जी के विचार से आत्मा की अनंतशक्तियों का बोध ही मानव को सही दिशा प्रदान कर सकता है🙏