रिपोर्ट जितेन्द्र पाठक संतकबीरनगर
संतकबीरनगर – एक इंटरव्यू में इफको के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पटेल ने बताया भारत एक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर देश है जिसे उसकी कृषि और पर्यावरणीय समृद्धि ने नवीन युग में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है. भारतीय कृषि द्वारा उत्पादित अन्न दुनिया की जनसंख्या की भोजन पूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देता है और देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. हालांकि, इसके साथ ही साथ जरूरत है. ऐसे में भारतीय कृषि और पर्यावरण के बीच संघर्ष और संगठन के विषय को समझना बेहद जरूरी है. भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां कृषि व्यापार, ग्रामीण आधारित अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ है. कृषि व्यापार देश की जीडीपी का महत्वपूर्ण हिस्सा है और लगभग 70 प्रतिशत लोग जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर आश्रित है. इसके साथ ही कृषि क्षेत्र देश की आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी का समाधान, ग्रामीण विकास और जनसंख्या संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कृषि खेती भारतीय | समाज की आधारशिला है. भारत की 58 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहां कृषि पर निर्भरता अधिक होती है. हालांकि, दिन-प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या, भूमि की अपर्याप्तता, जल संकट, मिट्टी की क्षारता, जलवायु | परिवर्तन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ भारतीय कृषि के लिए पर्यावरणीय चुनौतियां पैदा कर रही हैं. अनियंत्रित, पर्यावरणीय प्रदूषण, जल | संकट और जंगलों की कटाई जैसे मुद्दे लगातार खेती को प्रभावित कर रहे हैं. निरंतर रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध उर्वरकों का उपयोग भी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है आधुनिक समय में रासायनिक उर्वरकों पर ही आश्रित होना भी एक गंभीर समस्या है जिससे जल ,वायु, मृदा , प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और मृदा में अम्लीय एवं क्षारीय होने के साथ साथ मृदा की भौतिक दशा भी ख़राब हो रही है ऐसे समय में हम सब को एक साथ संकल्प लेकर आगे आने की आवश्यकता है कि रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करके अन्य उर्वरक नैनों तकनीकी से बने उर्वरकों को प्रयोग में लाये और इनका उपयोग करके जल ,वायु, मृदा , प्रदूषण को कभी हद तक कम किया जा सकता है क्योंकी इन नैनों आधारित उर्वरकों (इफ़को नैनों यूरिया तथा इफ़को नैनों DAP )का प्रयोग करके कम लागत में अधिक उत्पादन ले सकते है क्यों कि इन नैनों तकनीकी से बने उर्वरक की उपयोग दक्षता काफ़ी अधिक होती है जो कि एक पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में सहयोगी सिद्ध हो रहा है ।
आज के समय में बुनियादी जल स्रोतों की कमी और जल संरक्षण के अभाव ने भी भूमि और जल संसाधनों की स्थिति को खतरे में डाल दिया है. | संवेदनशील खेती की प्रोत्साहना संवेदनशील खेती तकनीकों का अधिकतम उपयोग करने द्वारा खेती की प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए संगठनों और सरकारी नीतियों का समर्थन करना चाहिए. इसमें समयानुसार खेती, सिंचाई प्रबंधन, नैनों उर्वरकों पर अधिक ज़ोर देना होगा इसके साथ साथ जैविक खेती, पेड़-पौधों के संरक्षण, वातावरणीय जलवायु परिवर्तन के लिए उचित संगठनों का गठन और जल संरक्षण को प्रमुखता देना शामिल है. कृषि क्षेत्र में जल संसाधनों का सुरक्षित और सुरम्यता से उपयोग करने | के लिए जल संरक्षण को महत्वपूर्णता देना चाहिए. मेरा मानना है कि आप कितने ही प्रयास पर्यावरण सरंक्षण या अन्य कृषि के मुद्दे को लेकर क्यों न कर लें. हमें जरूरत है तो सिर्फ इस बात कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इस जिम्मेदारी को समझे तो ज्यादा बेहतर होगा पर्यावरणीय मुद्दों के कारण भी भारत में एक चिंता का विषय बन चुका है , भारतीय कृषि को एग्रीकल्चर में नैनों यूरिया व नैनों DAP उर्वरक पर अधिक ज़ोर देना होगा जिससे रासायनिक उर्वरकों को कम करके लाखों करोड़ों की सब्सिडी बचा के देश के सतत विकास में लगाया जा सके जिससे रोज़गार सृजन होगा विष मुक्त खेती होगी l