अनुराग लक्ष्य, 14 सितंबर
मुम्बई संवाददाता ।
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
,,, मेरी हिंदी हिन्द की जान है
इस पर हमको अभिमान है
है राम की मर्यादा इसमें
और सीता की पहचान है ।
यह शाम सिंदूरी लगती है
हर युग में पूरी लगती है
क्यों गर्व करें न हम इस पर
यह देश की अपने शान है,,,
आज चौदह सितंबर है। आज के दिन पूरे देश में हिंदी दिवस का उत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। साथ ही हिंदी कविसम्मेलनो का भी आयोजन बड़ी मात्रा में आयोजित किए जाते हैं।
सरकारी कार्यालयों के कर्मचारियों को भी हिदायत दी जाती है कि आप ज़्यादा से ज़्यादा अपना काम हिंदी में करें। लेकिन दूर दूर तक इसका अनुसरण नहीं दिखाई देता ।
दिक्कत तो तब और बढ़ जाती है जब किसी हिंदी दिवस के कार्यक्रम का मुख्य अतिथि अंग्रेज़ी में अपने विचार रखने लगता है।
खेद का विषय है कि हिंदी को सिर्फ औपचारिकता मात्र मान चुके हैं। सरकारी कार्यालयों से लेकर रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में जितना इस्तेमाल लोग अंग्रेज़ी भाषा का करते हैं, उतना अगर हिंदी भाषा का भी होता तो क्या बात होती।
शुक्र है इस देश के साहित्य और अदब का, जहां के मंचों पर दोनों अभी साथ साथ ज़िंदा हैं। तभी तो मैं Saleem Bastavi Azizi इस बात को स्वीकार करते हुए कहता हूं कि,
,,, कितना हसीं सफर हो साहित्य और अदब का
इक आँख में हों गालिब दूजे में गर निराला
उर्दू अगर है धड़कन हिन्दी हमारी जां है
आओ इन्हें ओढ़ा दें तहज़ीब का दुशाला ,,,