ग़ज़ल
चांदनी धूमिल हुई और रंग फीक़ा हो गया।
देखकर उनको न जाने चांद को क्या हो गया।।
उसकी अपनी शख्सियत है उसका है अपना निज़ाम ।
प्रेम से जिसने पुकारा वो उसी का हो गया।।
जब से उसने कर लिया गलती पर अपनी पश्चाताप ।
यूं समझये आदमी वो मरकर के जिंदा हो गया।।
दिल पे भारी बोझ लेकर मैं गया था उसके पास।
उसने हंस के छू दिया और मूड अच्छा हो गया।।
इक तपन थी दिल के अंदर आंख में था सूनापन।
आपके आने से मौसम आशिकाना हो गया।।
उसकी मेहनत रंग लाई हो गई क़िसमत बुलन्द।
कल जो माटी था वो हर्षित आज सोना हो गया।।
विनोद उपाध्याय हर्षित