शाहिद बस्तवी के देहांत पर विशेष/ बस्तवियों ने हमेशा बस्ती को गौरवान्वित किया,,,


अनुराग लक्ष्य,13 सितंबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता।
,,, ऐ शहर ए बस्तवियों तुम्हें मेरा सलाम
मुद्दत हुई न कर सका तुमसे कोई कलाम
मैं दूर हूं तो क्या हुआ, दिल में तो तुम्हीं हो
इंशालाह जल्द ही गुज़रेगी कोई शाम,,,
उपरोक्त पंक्तियों में आप मेरा दर्द और बस्ती की मुहब्बत को बखूबी महसूस कर सकते हैं। जब से सुना है कि मेरे बहुत ही अज़ीज़ और हमनवा मरहूम शाहिद बस्तवी इस दुनिया को अलविदा कर गए, तब से चेहरा मालूम है और आंखें नम ।
इससे पहले भी हमने इस तरह के दर्द सहे हैं, और उर्दू अदब के बस्तवियों को अपनी आंखों से ओझल होते भी देखा है।
आपको याद होगा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में उर्दू डिपार्टमेंट के हेड अख्तर बस्तवी जो पूरे हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि बैरूनी मुल्कों में भी अपने मेयारी शायरी और एक कामयाब संचालक के लिए जाने और पहचाने जाते थे, आज वोह भी हमारे बीच नहीं हैं। अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुकाम आता करे।
आरज़ू बस्तवी , यह नाम ज़हन में आते ही तरन्नुम के एक ऐसे बेहतरीन शायर का अक्स ज़हन में उभरता है, जैसे अभी कल की बात है। यकीन नहीं होता कि ऐसा खूबसूरत शायर हमारे बीच नहीं रहा । जिसकी शायरी ने एक लंबे अरसे तक बस्ती के अदबी महफिलों की रौनक बढ़ाई।
अहसान बस्तवी , एक ऐसा शायर जिसे कहीं पर सुना जा सकता था। चाय की दुकान हो, पान की दुकान हो या शहर में आयोजित नशीषतें, काव्यगोष्टियां या कविसम्मेलन मुशायरे, हर जगह अपनी जबरदस्त उपस्थित दर्ज कराते थे, अफसोस सद अफसोस आज वोह भी हमारे बीच नहीं रहे।
असलम बस्तवी , अख्तर बस्तवी आरज़ू बस्तवी और एहसान बस्तवी के दौर का एक और होनहार और कोहना मशक शायर भी हमारे बीच नहीं हैं। जिसने बस्ती की अदबी महफिलों में अक्सर अपनी बेहतरीन गजलो का मुज़ाहरा किया। और शोअरा हज़रात में काफी मकबूलियत भी हासिल की थी।
रही बात मरहूम शाहिद बस्तवी की तो, यह सारा शहर जानता है कि जिस तरह आतिश सुल्तानपुरी ने अपनी शायरी का सफर मेरी दहलीज से शुरू किया था, उसी तरह मरहूम शाहिद बस्तवी ने भी अपनी शायरी का आगाज़ मुझ नाचीज़ की ही दहलीज़ से शुरू की। खुशी की बात है, कि शाहिद बस्तवी आज हमारे बीच नहीं हैं फिर भी उनके कलाम हमेशा उन्हें बस्ती के अदब और साहित्य में जिंदा रखेंगे।
मेरी दुआ है कि मौला उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुकाम अता करे। आमीन या रब्बल आल्मीन ।