पूर्व विधायक स्व पंडित राम देव दुबे के श्रद्धेय पुत्र आलोक भारती की पुण्य तिथि पर अर्पित कर दी गई श्रद्धांजलि ।

 

यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से खल्क़,

न उनकी रस्म नयी है, न अपनी रीत नयी!

यूँ ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग मे फूल,

न उनकी हार नयी है, न अपनी जीत नहीं!

— फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

प्रतापगढ़ – शनिवार को पूर्व विधायक स्व पंडित राम देव दुबे के ज्येष्ठ पुत्र कवि साहित्यकार, राजनीति के परिपक्व रहे आलोक भारती जी की पुण्य तिथि पर लोगों ने श्रद्धा सुमन छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर नम आंखों से दी गई विनम्र श्रद्धांजली । इक्कीस वर्ष पूर्व मात्र ४७ वर्ष की उम्र में उन्होंने इस दुनिया से विदा ली! फ़ैज़ की उपरोक्त पंक्तियाँ उन्हें बहुत पसंद थीं क्योंकि उन्हें यक़ीन था की शोषक हारेंगे और शोषित, वंचित एवं प्रताड़ित मानवता देर-सबेर विजयी अवश्य होगी! आलोक जी एक मौलिक कवि, लेखक एवं प्रखर वक़्ता थे. अक्सर फ़ैज़, मजाज, साहिर, जोश, मख़्दूम और अली सरदार जाफ़री के इनक़िलाबी नज़्मों एवं तरानों को पढ़ने एवं सुनने का शौक़ रखते थे. हाशिए पर बैठे, दमित एवं पीड़ित-प्रताड़ित मानवता के प्रति उनका प्राकृतिक लगाव था. १९७० के दशक में उत्तर प्रदेश में छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया. लखनऊ के नेशनल कालेज के छात्र संघ के अध्य क्ष चुने गये. आये दिन धरना, प्रदर्शन, सभाओं एवं रैलियों में शिरकत करते हुए दर्जनो बार जेल गए. ये सिलसिला लखनऊ विश्वविद्यालय तक जारी रहा. आपातकाल के दिनों मे आख़िरी दो महीनों के लिये उन्हें गिरफ़्तार किया गया! इनके छोटे भाई राजेश दुबे हमेशा लखनऊ के दारुल शफा में एक साथ रहते थे. जो इस समय प्रशासनिक अधिकारी के उच्च पद पर आसीन हैं। आलोक जी बड़े होने के नाते वह अपने परिवार के एक अगुआ थे, वह सब भाइयों के लिये एक प्रेरणास्रोत थे । उनके निज आवास पर कवियों, साहित्यकारों एवं राजनीति कर्मियों का जमावड़ा सा लगा रहता था! सोवियत संघ रूस, चीन, जर्मनी, बुल्गारिया, हंगरी, चेक्सलोवाकिया, पोलैंड इत्यादि मुल्कों की गहन यात्रा की. उनका सम्पूर्ण जीवन एक खुली किताब था. चिंतन के स्तर पर उनके पिता स्व पं0 राम देव दुबे जी पूर्व विधायक समाजवादी विचारधारा से जुड़े हुए थे ।, जबकि स्व आलोक जी प्रतिबद्ध साम्यवादी होने के नाते, ये लगभग तयशुदा सी बात थी की शायद ही वे विधायक, सांसद या मंत्री बन पाते फिर भी आजीवन उन्होंने शक्ति और सत्ता के आसान पथ का त्याग कर, सियासत में सर्वहारा के इस पथरीले, दुरूह मार्ग का ही वरण किया! मुश्किल होता है एक कवि की भावुकता एवं संवेदनशीलता को सियासत की ठोस, संवेदनालुप्त धरातल के साथ तालमेल बिठाना. अप्रतिम योद्धा की नाईं उन्होंने ताउम्र दोनों प्रतिकूल धाराओं को एक साथ लेकर चलने का प्रयास किया ।

स्वनाम धन्य पिता के जूझारू, कर्मठ एवं यशस्वी सुपुत्र को अश्रुपूरित नयनों से सभी ने नमन किया। इनका परिवार हमेशा से ही समाज के उत्थान के प्रति समर्पित चला आ रहा है।

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