चार जून के इंतज़ार में बूथवार गुणा-गणित में उलझे सियासतदांन

बस्ती ।संसदीय सीट पर इस बार भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर ने चुनावबाजों के माथे पर सिलवटें डाल दी हैं। पांच विधानसभा सीटों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जातीय समीकरण हावी दिख रहे हैं।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की अयोध्या नगरी से सटी बस्ती संसदीय सीट पर इस बार विकास, राष्ट्रवाद, कानून-व्यवस्था के मुद्दों को जातिवाद ने कड़ी टक्कर दी है। महंगाई, बेरोजगारी के सवाल पर जहां बूथों पर लोग बंटते नजर आए, वहीं भाजपा के परंपरागत मतों में बिखराव की आवाज ने चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में मोदी मैजिक के बीच बस्ती में भाजपा की हैट्रिक लगेगी या नहीं, कहना आसान नहीं रह गया है।संसदीय सीट पर इस बार भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर ने चुनावबाजों के माथे पर सिलवटें डाल दी हैं। पांच विधानसभा सीटों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार विकास और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जातीय समीकरण हावी दिख रहे हैं। भाजपा यहां से हैट्रिक लगाएगी या गठबंधन की साइकिल चलेगी , कुछ कहा नहीं जा जा सकता।इस सीट पर भाजपा के हरीश द्विवेदी सपा के टिकट पर लड़ रहे पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी के बीच आमने-सामने मुकाबला रहा। बसपा ने यहां लवकुश पटेल को उतारा है, लेकिन ज्यादातर बूथों पर उनके न पोलिंग एजेंट दिखे न बस्ते नजर आए। इससे कहा जा सकता है कि भाजपा के मुकाबले इस बार गठबंधन उम्मीदवार के अलावा मुस्लिम मतदाताओं के सामने कोई तीसरा विकल्प भी नहीं रहा।बूथों पर मुस्लिम मतदाताओं की लंबी कतारें गठबंधन के साथ उनकी एकजुटता बयां करती रहीं।सदर के भूअर निरंजनपुर बूथ से परिवार समेत बाहर निकलते समय शफीक अहमद कहते हैं कि महंगाई, बेरोजगारी का सवाल सबसे बड़ा है। मोदी को 10 साल मौका दिया गया, लेकिन इस बार परिवर्तन होना चाहिए।इसी बूथ पर पहली बार मतदान करने आई शबीना का भी कहना था कि धर्म-संप्रदाय के नाम पर समाज को बांटने वालों के साथ हम नहीं जा सकते। यहां से आगे केडीसी के बूथ पर भी कमोवेश यही माहौल रहा। जबकि शहर के कटरा में अमित अपनी 80 वर्षीया मां सोना देवी के साथ मजबूत विदेश नीति, आतंकवाद, माफियाराज के सफाया के सवाल पर मतदान करने पहुंचे।मौजूदा सांसद की कार्यशैली से पार्टी के कुछ नेताओं की नाराजगी बूथों पर महसूस की गई।ज्यादातर बूथों की कमोवेश यही स्थिति रही। वोटरों को प्रत्याशी नहीं बल्कि मोदी और गठबंधन से मतलब था।

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