मरने के बाद एक नया काम करूंगा, इंसानियत को क़ब्र में ही आम करूंगा, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,

अनुराग लक्ष्य, 26 मई
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता।
कुदरत ने हज़ारों साल पहले पहाड़ों की बुलंदी झरनों के तबस्सुम कलियों की मासूमियत और फरिश्तों के नूर को इकट्ठा कर के जिस मुकद्दस रिश्ते को जन्म दिया था, उसी का नाम है इंसानियत, लेकिन अफसोस सद अफसोस आज सबसे ज्यादा खतरे में वही है, जो सारे धर्म और मज़हब से ऊपर है। इसी सच्चाई और हकीकत को आपसे रू बरु कराने के लिए मैं Saleem Bastavi Azizi, आज कुछ अपने चुनिंदा अशआर लेकर आपकी खिदमत में हाज़िर हो रहा हूं।
1/ मरने के बाद एक नया काम करूंगा
इंसानियत अब क़ब्र में ही आम करूंगा
दुनिया मिटा न पाएगी जिसको कभी सलीम
इंसानियत कुछ इस तरह गुलफाम करूंगा
2/ मुहब्बत को फिज़ाओं में चलो हम आम कर डालें
जो तूफाँ हैं ज़माने में उन्हें गुलफाम कर डालें
जिन्होंने ज़िंदगी का अक्स भी देखा नहीं अब तक
चलो यह ज़िंदगी अपनी उन्हीं के नाम कर डालें
3/ कभी ज़माने में ऐसा भी कोई यार मिले
वफा के नाम पे हर रोज़ उससे प्यार मिले
गरीब मैं सही मेरा शहर न गरीब रहे
हमारे हाथों को कोई ऐसा कारोबार मिले
4/ ऐ आसमां तू ही बता यह कौन सा परिवेश है
न खुदा का ज़िक्र है, न राम का उपदेश है
इसलिए इंसानियत के वास्ते संसार में
एकता कायम हो मेरा बस यही उद्देश्य है
,,,,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,,,

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