🏇 *ओ३म्* 🏇
🐂 ईश्वरीय वाणी वेद 🐂
*वायविन्द्रश्च चेतथ: सुतानां वाजिनीवसू।तावा यातमुप द्रवत्*
।। ऋग्वेद १/२/५।।
🌴 मंत्र का पदार्थ 🌴
हे वायो = ज्ञानस्वरूप ईश्वर! जैसे आपके धारण किए हुए, वाजनीवसू = प्रातः काल के तुल्य प्रकाशमान, इन्द्रश्च = सूर्य लोक और वायु , सुतानाम् = आपके उत्पन्न हुए पदार्थों का, चेतथ: = धारण और प्रकाश करके उनको जीवों के दृष्टिगोचर करते हैं,इसी कारण से , द्रवत् = शीघ्रता से, आयातमुप = उन पदार्थों के समीप होते रहते हैं!
🌈 मंत्र का भावार्थ 🌈
इस मंत्र में परमेश्वर की सत्ता के अवलंब से इंद्र( सूर्य) और वायु अपने अपने कार्य को करने में समर्थ होते हैं इसका वर्णन है।
🧘 *मंत्र का सार तत्व* 🧘
यह संपूर्ण संसार जड़ है।जो संसार दिख रहा है इसे *कार्य प्रकृति* या विकृति कहते हैं।जो इस संसार का उपादान कारण *कारण प्रकृति* दिखती नहीं दोनों जड़ ही है मगर फिर भी यह जो हलचल दिख रही है इसका कारण *चेतन परमात्मा* है।इसे एक उदाहरण से समझते हैं।
एक *कार* है और एक *एक हवाई जहाज* है।एक जमीन पर चलता है एक आसमान में उड़ता है मगर बिना *ड्राईवर व पायलट* के न कार दौड़ सकती न जहाज उड़ सकता है।इसी प्रकार ये जो *अतंरिक्ष में सूर्य और वायु* अपना अलग कार्य कर रहे हैं ये ईश्वर के सामर्थ्य से ही कर पाते हैं क्योंकि ये दोनों स्वभाव से *जड़ प्रकृति* से बने हैं इसलिए जड़ ही है। इसलिए जब भी इन *सूर्य और वायु* को देखो तो ईश्वर का ही धन्यवाद करें।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*
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