अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पवित्र जन्म भूमि अयोध्या में स्थानीय मंत्रार्थ मंडपम हनुमान गुफा में आयोजित 9 दिवसीय श्री राम कथा महोत्सव का समापन हर्षोल्लास व धूमधाम से हुआ। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कैलाश मठ काशी के महामंडलेश्वर स्वामी आशुतोषानंद गिरी जी महाराज ने श्री राम कथा महोत्सव के समापन अवसर पर भक्तों को कथा का अमृत रसपान कराते हुए कहा की हमें प्रभु श्री राम से शरणागत की रक्षा जैसे आदर्श परक मूल्यों को सिखना चाहीए, चाहे शरण में आने वाला हमारा शत्रु अथवा शत्रु का सगा संबंधी ही क्यों ना हो। जो भी शरण में आये उसकी रक्षा होनी चाहिए। आगे उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा की जब विभीषण देशनिकाला का सामना करके प्रभु श्री राम के शरण में आये तो सूग्रीव नाराज हो गए और प्रभु से बोले की अगर आप केवल अपने मन का करेेंगे तो हम अपनी सेना लेकर वापस चले जाएंगे। इस पर प्रभु ने सूग्रीव से कहा की चाहे यहां से पुरी सेना चली जाए लेकिन जो हमारे शरण में आया है उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है, यह हमारा परम कर्तव्य है। कथा मंडप जय श्री राम के नारों से गुंज उठा।
उन्होंने क्रोध को शांति के लिए घातक बताया और कहा की क्रोध मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ती है लेकिन उसमें जल्दी फैसला न ले। क्रोध में जल्दी लिए गए फैसले अक्सर घातक साबित होते हैं। उन्होंने प्रभु श्री राम और सुग्रीव के प्रसंग के माध्यम से समझाया कि जब सुग्रीव को सब कुछ मिल गया तो वह निश्चिंत होकर अपने महलों के भोग विलास में लिप्त हो गया और उसे प्रभु के कार्य की सुध ही नहीं रही। कई दिन बीतने के पश्चात प्रभु श्री राम को क्रोध आया लेकिन उन्होंने तुरंत कोई फैसला नहीं लिया। उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समझाते हुए कहा कि उसके साथ हमें जो भी करना है कल करेंगे। अर्थात कल तक क्रोध शांत हो जाएगा। इसलिए पूज्य गुरुदेव ने कहा कि जब भी किसी पर क्रोध आए तो उसे कल पर टाल देना। क्रोध को कल पर टाल देने से क्रोध शांत हो जाएगा और जीवन में शांति बनी रहेगी। बीच-बीच में भजन की मधुरता और सरसता ने कथा को और अधिक रसयुक्त बना दिया। एकादशी व्रत के बावजूद श्रोताओं में जो उत्साह का संचार था वह अपूर्व था। श्रोतागणों में विकलता का भाव भरा हुआ था। नौ दीवसीय कथा 9 मिनट के समान हो गया था। पुरी हर्षोल्लास के साथ श्री राम कथा महोत्सव का समापन हुआ।