शब ए मेराज पर विशेष,,,

अनुराग लक्ष्य, 7 फरवरी
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता ।
,,, ऐ खुदा आज की शब लाल ओ गुहर हो जाए
ख्वाहिश ए दिल है कि तैबा का सफर हो जाए
है तमन्ना यही ज़िंदा हैं जो
तारीकी में
ऐसे इंसानों के दुनिया में सहर हो जाए,,,
आज ,शब ए मेराज, की रात है, सबसे अफ़ज़ल और सबसे आला, जिसका आलम ए इस्लाम में बड़ी फजीलत है। आज की ही वोह मुकद्दस रात है जिस रात में महबूब और मुहिब का मिलन हुआ था। जिसे इस्लाम में शब ए मेराज का नाम दिया गया है।
अल्लाह के हुक्म से
मसजिद ए हराम में हज़रत ए जिब्राइल अलै, का आना और हमारे प्यारे आका को अल्लाह का पैगाम सुनाना, फिर मसजिद ए अक्सा में मेरे सरकार का तमाम अंबिया अकरम को अपनी इमामत में नमाज़ अदा करना। और वहां से बुराक की सवारी पर हज़रत ए जिब्राईल के साथ पहले आसमान से सातवें आसमान को जाना, और अल्ला ह से मुलाकात का शर्फ हासिल करना। यह सिर्फ मेरे सरकार के ही हिस्से में आया है।
रवायतों की मानें तो आपको आपकी उम्मत के लिए पांच वक्त की नमाज़ बतौर तोहफे की शक्ल में मेरे रब ने आपको आता कीं, जिससे हम मुसलमानों पर पांच वक्त की नमाज़ें फर्ज़ हो गईं।
आज की रात मुसलमानों के लिए बड़ी ही अज़मत और निजात की रात है। मुसलमानों को चाहिए की मगरिब के नमाज़ के बाद नवाफिल नमाज़ों का एहतमाम करें। तिलावत ए कुरआन में पूरी तरह मसरूफ होकर अपने रब की बारगाह में अपना मारूजा पेश करके अपने गुनाहों की बख्शीस की तलब करें।
मेरा रब रहीम है, करीम है, वोह अपने महबूब के सदके में जरूर बख्श देगा। क्योंकि,
,,, ज़र्रे ज़र्रे में तेरा मुझको नूर दिखता है
हर तरफ़ तेरा ही मुझको जहूर दिखता है
कौन है जिसको तेरे मय की नहीं है ख्वाहिश
इसलिए मुझमें भी थोड़ा सुरूर दिखता है,,,,

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