बेसबब जो हमें रुलाते हैं।-रूपेंद्र नाथ सिंह रूप

ग़ज़ल

दिल के आंगन में जब वो आते हैं।
प्यार के फूल खिल खिलाते हैं।

बांटते वो ख़ुशी ज़माने में।
वो तो हर एक को हंसाते हैं।

लोग ऐसे भी हैं ज़माने में।
बेसबब जो हमें रुलाते हैं।

नफ़रतों से न कोई रिश्ता है।
प्यार के दीप हम जलाते हैं।

लोग ऐसे भी हैं सियासत में।
आग नफ़रत की जो लगाते हैं।

हम तो तनहा कभी नहीं होते।
पास हर वक्त उनको पाते हैं।

रूप दुनिया सराय जैसी है।
लोग आते हैं लोग जाते हैं

रूपेंद्र नाथ सिंह रूप 

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