गीत।
भीड़ में अपनों के भी अपना कोई होता नहीं।
राह है हमराह हैं पर हमसफ़र होता नहीं।
शाम सी खामोश सी, मेरी ज़िन्दगी के दिन ढले।
रात में सपना सुहाना आंख में फिर भी पले।
दे किरण उम्मीद की इक सुब्ह देखो फिर छले।
रास्तों की फिक्र ना कर, हम सफर में हैं चले।
थामी’ है उम्मीद की जब डोर फिर रोता नहीं
राह है हमराह है,,,,,,,,,
ज़िन्दगी हर मोड़ पर लेती रही है करवटें।
कोशिशें करते रहें आने न पाए सिलवटें।
हो ज़मीं पैरों तले औ आसमां की छांव हो।
साथ हो तेरा जहां खुशियों भरा वो गांव हो।
है यही बस ख़्वाब इक जो नींद में सोता नहीं।
राह है हमराह,,,,,,,,,
ज्योतिमा शुक्ला ‘रश्मि’