कागज की नाव का सफर, कितना हसीन था। डा अनुमोदिता शुक्ला

कागज की नाव का सफर, कितना हसीन था।
खुशनुमा था वो बचपन , हर मौसम रंगीन था।
सारा जहान नन्ही मुट्ठियों में बंद मिलता था ।
क्योंकि,पैरो तले खुशियों का अमन था।
हर मुराद भी होती थी पूरी जब शहर बंद था।
हर सुबह सपनों से आबाद उम्मीदों का चमन था।
हर आंगन में तितलियां मड़राती थीं
क्योंकि वहां खुबसूरत गुलों का बंध था।

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