भगवान के प्रति अप्रतिम विश्वास का नाम सुदामा- विद्याधर भारद्वाज

कुदरहा, बस्ती। मित्रता, विपन्नता व सम्पन्नता देखकर नहीं की जानी चाहिए। सच्चा मित्र वही है जो मित्र के सुख दुःख में काम आये। यह बाते कांची पीठ अयोध्या धाम से पधारे कथावाचक विद्याधर भारद्वाज ने विश्राम दिवस पर कथा व्यास पीठ से व्यक्त की। उहोने कहा कि भगवान अपने संबंधों में प्रभाव को नहीं देखते वह भाव को प्रधानता देते हैं। सुदामा चरित्र आत्मज्ञान के लिए है उपदेश के लिए नहीं है। ईश्वर जगत के माता-पिता है सभी के भाव जानते हैं। सुदामा प्रकांड विद्वान थे जो ज्ञानी भी  थे। उनके ज्ञान का विनिमय धनार्जन के लिए नहीं है उनका ज्ञान भगवान के प्रसन्नता के लिए है। शास्त्रों में दरिद्र उसी को कहा जाता है जिसके जीवन में असंतोष है। जो असंतुष्ट है वही दरिद्र है। श्रीमद् भागवत महापुराण की मांगलिक कथाओं का श्रवण करने से प्राणी इस भौतिक संसार के समस्त सुखों को भोगकर शरीर परित्याग के पश्चात परमधाम को प्राप्त होता है। ऋषि कुमार द्वारा शापित होने के बावजूद महाराज परीक्षित ने श्री शुक देव जी महाराज से श्रीमद् भागवत श्रवण कर भगवत धाम को प्राप्त किया। द्वापर के अंत में भगवान श्री कृष्ण श्रीमद् भागवत में आकर प्रविष्ट हुए और उसी समय से श्रीमद् भागवत भगवान का स्वरूप हो गया परमहंसों की संहिता हो गयी। इसके आगे उन्होंने कलयुग की महिमा को बताया कलिकाल में  भगवन नाम संकीर्तन
 प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा।
    कथा में मुख्य यजमान गिरीश चंद्र दुबे, साकेत, हनुमंत प्रसाद, बालकृष्ण दुबे, धीरेंद्र, नरेंद्र दुबे, राम गोपाल, हरि गोविंद, पप्पू दुबे, सुशील, बंटी दुबे, राम प्रकट उपाध्याय, दिवाकर चौधरी, रजनीश गिरी, जीतेंद्र गौड, दयाराम मौर्या सहित तमाम लोग मौजूद रहे।