जीते हैं हम तो देखके रूख माहताब का, साहिल प्रतापगढ़ी,

जीते हैं हम तो देखके रूख माहताब का, साहिल प्रतापगढ़ी,,,,,

अनुराग लक्ष्य 17 अक्टूबर

सलीम बस्तवी अज़ीज़ी

मुम्बई संवाददाता ।

१- खुश्क हैं आंखें अभी दरिया न करो तुम,

ज़ख्मों को मेरे दिल के खरोंचा न करो तुम ।

२- दिल के हैं जज़्बात खिलौना नहीं समझो,

जज़्बात से हरगिज़ मेरे खेला न करो तुम ।

३- जीते हैं हम तो देख के रुख माहताब सा,

ज़ुल्फों से अपने रुख पे अंधेरा न करो तुम ।

४- ज़ख्मों से ताब और तो हम ला न सकेंगे,

इतना भी हमें प्यार से देखा न करो तुम ।

५- मन को न भाये तुम्हारा दूर बैठना, अब बार बार मुझसे तो रूठा न करो तुम ।

६- आशियां बना के ठहर जाइए दिल में,

दिल की ये दहलीज से जाया न करो तुम ।

७- रक्खे हो क़दम इश्क़ की जो राह में *साहिल,

रुक रुक के रहगुजर में यूं सोचा न करो तुम ।

*साहिल* *प्रतापगढ़ी*