सतगुरु चालीसा 

सतगुरु चालीसा

*************

-:दोहा :-

चरण वंदना गुरु की, और झुकाऊँ माथ।

बस इतनी सी चाहना, हो मेरे सिर हाथ।।

 

-:चौपाई :-

चरण गुरू वंदना कीजै।

जन्म सफल अपना कर लीजै।।१

गुरू ज्ञान का तोड़ नहीं है।

इससे सुंदर जोड़ नहीं है।।२

 

दिवस आज फिर पावन आया।

सबके मन को बहु हर्षाया।।३

गुरु चरनन में शीश झुकाओ।

पा आशीष धन्य हो जाओ।।४

 

गुरु दरिया में आप नहाओ।

जीवन अपना स्वच्छ बनाओ।।५

गुरुवर हमको सदा सजाते।

ठोंक- पीटकर ठोस बनाते।।६

 

पाठ पढ़ाते मर्यादा का।

भाव मिटाते हर बाधा का।।७

गुरू कृपा सब पर बरसाते।

समय-समय पर गले लगाते।।८

 

गुरुवर सत का मार्ग बताते।

नव जीवन की राह दिखाते।।९

साहस धैर्य गुरु जी देते।

जीवन नैया को हैं खेते।।१०

 

गुरू शिष्य का निर्मल नाता।

जीवन को है सहज बनाता।।११

भेद-भाव नहिं गुरु है करता।

नजर शिष्य पर पैनी रखता।।१२

 

गुरुवर देते आप सहारा।

फैलाते जीवन उजियारा।।१३

शिष्य सभी उनको हैं प्यारे।

गुरुवर होते सदा सहारे।।१४

 

गुरु ही भव से पार कराते।

जीवन का मतलब समझाते।।१५

गुरु पर यदि विश्वास रखोगे।

जीवन का नव स्वाद चखोगे।।१६

 

गुरू शरण में पहुँच तो जाओ।

अपना जीवन आप बनाओ।।१७

महिमा गुरु की है अति प्यारी।

सदा सजाती उत्तम क्यारी ।।१८

 

गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।

स्वाद बडा होता है चोखा।।१९

गुरु ज्ञानी सब जान रहे हैं।

अपना हित पहचान रहे हैं।।२०

 

आप घमंडी कभी न होना।

बीज जहर के स्वयं न बोना।।२१

सदा गुरू हैं यही बताते।

वो तो भाव कभी न खाते।।२२

 

गुरु का यदि अपमान करोगे।

निश्चित ही दुख आप सहोगे।।२३

सोच समझकर गुरु से बोलो।

वाणी में मीठे रस घोलो।।२४

 

ज्ञानी तुम खुद को मत मानो।

गुरु ईश से बड़ा है जानो।।२५

वो भी गुरु को शीश झुकाते।

तभी आज ईश्वर कहलाते।।२६

 

गुरु का मान सदा ही रखिए।

और किसी से कभी न डरिए।।२७

गुरू संग जब आप रहेगा।

बाधाओं का किला ढहेगा।।२८

 

जिसने गुरु की आज्ञा मानी।

बन जाता वो खुद ही ज्ञानी।।२९

गुरु आज्ञा का पालन सीखो।

रहो शांत तुम कभी न चीखो।।३०

 

गुरू ज्ञान है बड़ा अनोखा।

स्वाद बड़ा होता है चोखा।।३१

गुरु ज्ञानी सब जान रहे हैं।

अपना हित पहचान रहे हैं।।३२

 

गुरु अपमान पड़ेगा भारी।

काम नहीं आयेगी यारी।।३३

सही समय है सोच लीजिए।

नादानी मत आप कीजिए।।३४

 

गुरु जीवन की सत्य कहानी।

आदि अंत की कथा बखानी।।३५

मात-पिता अरु गुरु सम बानी।

दुनिया में जानी पहचानी।।३६

 

नैतिक शिक्षा पाठ पढ़ाते।

ज्ञान की दरिया में नहलाते।।३७

गुरु हम पर उपकार हैं करते।

निंदा नफरत द्वेष भी हरते।।३८

 

गुरु सेवा से उन्नति होती।

पग-पग पर मिलता है मोती।।३९

गुरु की माया गुरु ही जाने।

पहले हम उनको पहचानें।।४०

 

-:दोहा:-

हाथ जोड़ विनती करूं, सतगुरु देव महान।

भूल क्षमा मम कीजिए, संग जगत कल्याण।।

 

गुरु चरण में स्वयं को, सौंप दीजिये आप।

बस इतना ही जानिये, मन में रहे न पाप।।

 

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र) गोण्डा उत्तर प्रदेश