विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर उन्मुक्त उड़ान मंच द्वारा एक विशेष साप्ताहिक रचनात्मक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बढ़ती जनसंख्या से जुड़े विविध पहलुओं पर गहन विचार और साहित्यिक प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का मुख्य विषय रहा — “बढ़ती जनसंख्या : कारण, लाभ, हानि और भारत पर इसका प्रभाव”। इस विषय को मंच के साहित्यकारों, शिक्षाविदों और नवांकुर लेखकों ने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से रेखांकित किया। कृष्ण कान्त मिश्र ‘कमल ’ के विषय प्रवर्तन में लेखकों को जागरूक करते हुये लिखा जनंसख्या वृद्धि भारत के लिए एक चुनौती पूर्ण मुद्दा है। अब तो भारत चीन को भी पछाड़ कर जनसंख्या के हिसाब से विश्व का पहला देश बन गया है। अगर ऐसे ही जनंसख्या बढ़ती रही तो आने वाले समय में भारत को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें बेरोजगारी, भूखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई इत्यादि है।
लेखकों का मानना है कि जनसंख्या वृद्धि के पीछे शिक्षा की कमी, सामाजिक जागरूकता का अभाव, निर्धनता, धार्मिक व पारंपरिक मान्यताएं, तथा स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुँच प्रमुख कारक हैं। नियंत्रित और शिक्षित जनसंख्या किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूँजी होती है। लेकिन अनियंत्रित वृद्धि समाज, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था तीनों पर संकट बन जाती है। भारत में जनसंख्या वृद्धि का परिणाम यह है कि काम करने वाले लोग कम है और आश्रित लोगों की जनसंख्या अधिक है।
लेखकों ने जनसंख्या वृद्धि के कुछ लाभों की भी चर्चा की, जैसे – युवा कार्यशील जनसंख्या का होना, उपभोक्तावाद को बढ़ावा, वृहत्तर श्रम शक्ति इत्यादि। वहीं, हानियों के रूप में बेरोजगारी, कुपोषण, स्वास्थ्य संकट, पर्यावरणीय दबाव, आवास समस्या और संसाधनों का तीव्र क्षरण उल्लेखनीय रहे।
रचनाकारों ने भारत की परिस्थिति का विशेष उल्लेख करते हुए चिंता जताई कि यदि जनसंख्या पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किया गया, तो भारत की प्रगति बाधित हो सकती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं रोजगार की योजनाएँ इस दबाव को झेलने में असमर्थ हो सकती हैं।
इस विचारगोष्ठी में– संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’, अशोक दोशी ‘दिवाकर’, सुरेन्द्र बिंदल, परमा दत्त झा, मनजीभाई बवलिया, डॉ. स्वर्ण लता सोन ‘कोकिला’, अरुण ठाकर ‘जिंदगी’, दिव्या भट्ट ‘स्वयं’, सुरेश सरदाना, वीना टण्डन ‘पुष्करा’, नीरजा शर्मा ‘अवनि’, अनु तोमर ‘अग्रजा’, डॉ. अनीता राजपाल ‘अनु वसुन्धरा’, उदय सिंह कुशवाहा, अरुण सक्सेना अक़्श, सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’ एवं वीरेंद्र जैन ने सक्रिय रूप से सहभागिता निभाई|
विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर उन्मुक्त उड़ान साहित्यिक मंच की संरक्षिका एवं अध्यक्ष डॉ. दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ ने अपने लेख के माध्यम से बढ़ती जनसंख्या की गंभीरता को रेखांकित करते हुए विषय को पूर्णतः सार्थक किया। डॉ. दवीना ने इस दिवस पर जनमानस से अपील की कि – “जनसंख्या केवल आँकड़ा नहीं, यह उत्तरदायित्व है। प्रत्येक नागरिक को परिवार नियोजन, महिला सशक्तिकरण, और शिक्षा के माध्यम से इस उत्तरदायित्व को निभाना चाहिए। यही सच्ची देशभक्ति है।”
“जनसंख्या बम जो फूटा, जीवन बोझा बन जाए,
अगर न रोका आज इसे, कल देश पछताए।”
“जब सीमा लांघे आंकड़े, संसाधन भी चुप हो जाएं,
तो सोचो – बढ़ती भीड़ में, हम कहाँ तक बच पाएँ?”
“जनसंख्या बढ़े मगर समझदारी के साथ,
वरना भविष्य सिर्फ़ मलता रहेगा हाथ।”
सप्ताह में रचनाकारों ने भारतीय चिकित्सा दिवस पर रचनाए लिखकर चिकित्सकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करी| वहीं स्वामी विवेकानंद की पुण्य तिथि पर उनके युवाओं के लिए लक्ष्य निर्धारण, देश और माटी के लिए श्रद्धा और कर्म एवं कर्तव्य के प्रति उत्तरदायित्व के उद्बोधन को याद कर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करे|
कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागी रचनाकारों को विशेष सम्मान-पत्र प्रदान किए गए, जो नीरजा शर्मा ‘अवनि’ और नीतू रवि गर्ग ‘कमलिनी’ द्वारा संयोजित और डिज़ाइन किए गए। डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के अनुसार योग से तन बना सजीव, मन हुआ निर्मल शांत, स्वस्थ देह में जगे विवेक, हृदय नहीं कभी क्लांत। प्राणायाम से मिली दृष्टि, ध्यान बना साधना की राह, स्वास्थ्य से शुरू हुई यात्रा, पहुँची अंतर्मन की चाह।
सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी; द्वारा की गयी हर आयोजन की समीक्षा और कृष्णकांत मिश्र ‘कमल’ एवं संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ द्वारा विज्ञप्ति के लिए रचनाओं का संकलन और विश्लेषण कार्यक्रम की सफलता के नए मापदंड रचते हैं|