माँ की ऊर्जा – नेहा वार्ष्णेय

कहतें हैं जब कोई स्त्री माँ बनती है, तो वो सिर्फ माँ ही रह जाती है, घर के बाकी रिश्ते इसी रिश्ते के चारों ओर घूमते रहते हैं l स्त्री मां बनकर केवल एक नई भूमिका नहीं अपनाती बल्कि उसके भीतर एक ऐसी ऊर्जा जागृत होती है जो पूरे घर परिवार और समाज को प्रभावित करती हैl

यह ऊर्जा दिखती नहीं, पर इसका असर हर कोने में महसूस होता है। मातृत्व के शुरुआती दिनों में अक्सर यह समझा जाता है कि बच्चे की परवरिश में सबसे अधिक महत्व अच्छे खिलौने, पौष्टिक भोजन, श्रेष्ठ विद्यालयों का चुनाव और डिजिटल उपकरणों से दूरी का होता है लेकिन समय के साथ पता चलता है कि इन सबसे अधिक मायने मां की अपनी स्थिति उस की ऊर्जा और मानसिक संतुलन रखता है l एक मां का मन जैसे होता है वैसे ही घर का वातावरण बनता है l
यदि माँ परेशान है तो घर में तनाव रहता है, यदि वह शांत है, तो घर में सुकून रहता है l मां की मुस्कान, उसकी नजरिया, उसका व्यवहार घर के हर सदस्य पर असर डालता है l
वह ऊर्जा या कहें वह प्रभाव किसी भी भौतिक ऊर्जा स्रोत से अधिक प्रभावशाली है। मां की ऊर्जा केवल बच्चों को ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को आकर देती है l यदि यह ऊर्जा को ठीक से संवर जाए तो इसका प्रभाव आने वाली पीढियां तक जाता है कहते ही हैं- ” कि जब एक बच्चे को सवारते हैं, तो एक राष्ट्र को सवारते हैं, लेकिन वास्तव में जब आप एक मां को सवारते हैं तो पूरे समाज और विश्व को संवारने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है”।

आज की भाग दौड़ बड़ी जिंदगी में कई माताएं खुद को भूल जाती हैं वे सब कुछ परिवार और बच्चों के लिए करती हैं l

मेरा मानना है हर माँ हर स्त्री को अपने कर्त्तव्य के साथ थोड़ा समय खुद को भी देना चाहिए, जो भी रुचि है, उसको समय देकर अपनी पहचान बनानी चाहिए l

जरूरी नहीं कि दिन भर काम और घर परिवार के कामों में व्यस्त रहकर ही आप अच्छी माँ बनेंगी, बल्कि अपने शौक को निखार कर भी आप अपने बच्चों परिवार और समाज में अपनी अलग पहचान बना सकेगी l जब माँ खुद खुश और संतुष्ट रहेगी तभी तो मातृत्व और परिवार में सकारात्मक परिवर्तन आएंगे l

ये लेखिका के अपने विचार हैं..
स्वअनुभव (मातृत्व)
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग (छत्तीसगढ़)