एक सरकारी बाबू की पीड़ा

एक सरकारी बाबू की पीड़ा
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लोन करा दें पास रहूं आभारी सर
कर दें ये एहसान आख़िरी बारी सर

तीस पार बिटिया की शादी करनी है
और समधी जी हैं पक्के व्यापारी सर

ओवरटाइम और एडवांस मिलाकर भी
कर न पाया डोली की तैयारी सर

अभी है भरनी बच्चों के स्कूल की फीस
अभी तो बाक़ी हैं खरचे सरकारी सर

हर महीने नल-बिजली और बनिये का बिल
पड़ जाता है पापी पेट पे भारी सर

इक बूढ़े बीमार पिता-माता का बोझ
उस पर विधवा बहन दुखों की मारी सर

एक कमाने वाला दस खाने वाले
इसीलिए जीना भी है लाचारी सर

मुश्किल बहुत गुजारा है इस तनख़्वा में
खींचतान कर-कर के पत्नी हारी सर

बाक़ी कुछ ही बरस रिटायर होने में
पूरी कैसे होगी जिम्मेदारी सर

हाथा-जोड़ी कर-कर बाबूगीरी में
चुक गई यूँ ही उम्र हमारी सारी सर

थोड़ी सी जो आप सिफारिश कर देंगे
फरमाएंगे गौर बड़े अधिकारी सर

एक अदद दूल्हे का मोल लगा लूं तो
बेटी मेरी नहीं रहेगी क्वांरी सर

©डॉ कविता’किरण’
#मजदूर दिवस