मंच की संस्थापिका व अध्यक्षा डॉ दवीना अमर ठकराल देविका के मार्गदर्शन व नेतृत्व में साप्ताहिक आयोजनों की श्रृंखला में इस बार का विषय था “आज के परिपेक्ष्य में बच्चों की इच्छाओं का दमन सार्थक या निरर्थक”। डॉ अनीता राजपाल अनु वसुंधरा जी ने विषय के मूल भाव को उजागर करते हुए रचनाकारों को विवेकपूर्ण, निष्पक्षता से अपने विचार अभिव्यक्ति देने के लिए प्रेरित किया। अशोक दोशी, माधुरी शुक्ला, मीनाक्षी सकुमारन, नृपेंद्र चतुर्वेदी, डॉ स्वर्ण लता, दिव्या भट्ट, नीरजाशर्मा, अनु तोमर, माधुरी श्रीवास्तव, वीना टंडन, संजीव भटनागर, मंजुला सिन्हा, प्रजापति श्योनाथ व अरुण ठाकर ने अपने अपने विचारों की अभिव्यक्ति देकर समाज में सकारात्मक व प्रेरक संदेश देने का प्रयास किया। मंच पर जल दिवस मनाते हुए डॉ. दवीना अमर ठकराल ने जल के महत्व को उजागर करते हुए जल संरक्षण, जल प्रदूषण, जल संग्रहण के बारे में जागरूक किया।
सजग रचनाकार अशोक दोशी, अरुण ठाकर, डॉ स्वर्ण लता, डॉ पूर्णिमा पाण्डेय, चन्द्रभूषण निर्भय, माधुरी शुक्ला, दिव्या भट्ट, सुरेशचन्द्र जोशी, प्रजापति श्योनाथ सिंह, अनु तोमर, माधुरी श्रीवास्तव, डॉ पूनम सिंह, सविता मेहरोत्रा संजीव भटनागर, नीतू रवि गर्ग, नीरजा शर्मा,रेखा पुरोहित व वीना टंडन ने जलहरण घनाक्षरी के माध्यम से अपने सशक्त, परिपक्व, समाजोपयोगी, अनुकरणीय विचार प्रेषित कर जल दिवस मनाने के उद्देश्य को सार्थक किया।
इसके साथ ही साथ उन्मुक्त उड़ान ने शहीद दिवस के उपलक्ष्य पर दिनांक 23 मार्च, 2025 को आभासी काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया।
इस आयोजन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदानों को याद किया गया। मध्यान एक बजे से शुरू हुआ कार्यक्रम दोपहर दो बजे समाप्त हुआ। डॉ दवीना अमर ठकराल ने मंच संचालन किया। सर्वप्रथम उन्होंने माँ वीणापाणि को नमन कर सरस्वती वंदना कर आयोजन का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के बीच बीच में उन्होंने बलिदानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की जीवनी का संक्षिप्त वर्णन किया। उन्होंने स्वतंत्रता और बलिदान का महत्व भी बताया।आयोजन में मंच के रचनाकारों ने अपनी सहभागिता दी। अशोक दोशी “दिवाकर”, नीरजा शर्मा ‘अवनि’, डॉ.अनीता राजपाल ‘अनु’ वसुन्धरा, रेखा पुरोहित ‘तरंगिणी’, आ.शिखा खुराना, दिव्या भट्ट ‘स्वयं’ जी ने मंच से जुड़कर बलिदानियों के चरणों में काव्यपाठ के श्रद्धा सुमन अर्पित किए। अंत में नंदा बमराडा ‘सलिला’, किरण भाटिया ‘नलिनी’, स्वर्णलता सोन ‘कोकिला’ भी आयोजन से जुड़े और उन्होंने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। सभी रचनाकारों की प्रस्तुतियाँ ओजस्वी, भावपूर्ण और तन मन में जोश भरने वाली थीं। एक से बढ़कर एक रचनाओं की प्रस्तुति हुई, जिससे देशभक्ति के भाव जागृत हो गए।
कार्यक्रम का समापन दवीना अमर ठकराल ने अपने विचारों से किया-
अमर शहीदों ने आज़ादी के बीज बोए अपने बलिदान से,
खिल उठे फूल, महकी फिजा जीने लगे सभी सम्मान से।
आओ मिलकर करते हैं याद अमर शहीदों की गौरवपूर्ण गाथाओं को,
श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं अश्रु पूरित नयन व द्रवित भावों से।
आज की संस्कृति हमसे कुछ नया चाहती है,
माँ सरस्वती भी अब नवोन्मेषी निर्माण चाहती है ।
आज ख़तरा लग रहा है कई रावणों और कंसों से।
भारतीय संस्कृति पाश्चात्य सभ्यता से मुक्ति चाहती है।