*ज्ञानकुंभ कक्षा-१२*-आचार्य सुरेश जोशी

🪔🪔 ओ३म् 🪔🪔
*ज्ञानकुंभ कक्षा-१२*
अभी तक हमने ब्रह्माण्ड के चौथे तत्व में दो बातों की जानकारी प्राप्त की ।एक आत्मा स्वतंत्र व चेतन अनादि सत्ता है।दो उसमें छ:अनिवार्य लक्षण हैं।गतांक से आगे…………………
🍐एक विवादित तथ्य 🍐
*लोग आत्म हत्या क्यों करते हैं?*
🍐सम्यक समाधान!🍐
आत्मा की हत्या होना ये एक *पाश्चात्य कु-चिंतन है!* भारतीय वाड़्मय में विशेषकर *सत्य सनातन धर्म के मूल ग्रंथ चारों वेद में कहीं भी आत्महत्या* के प्रमाण नहीं मिलते!
इसी भ्रांति के चलते लोगों ने भ्रांति फैलारखी है कि *जो लोग पानी में डूब कर,फांसी लगाकर,जहर खाकर,आग में जलकर या तेल छिड़कर शरीर कोआग लगाकर* मर जाते हैं उनकी आत्मा तड़पती है।भूत -प्रेत बन जाती है।जिन बन जाती है।उनके परिवार वाले जब तक *मृतक श्राद्ध,तर्पण,पिंड-दान* नहीं करते उनकी मुक्ति नहीं होती?
इन समस्त भ्रांतियों का एक ही इलाज है वो यह है कि *आत्मा अजर-अमर,अविनाशी है। हत्या आत्मा की संभव ही नहीं है।मृत्यु भी आत्मा की नहीं शरीर की होती है*।जिस दिन ये बात बुद्धि में बैठ जायेगी उसी क्षण *भूत-प्रेत,चुड़ैल* की कल्पना हट जायेगी।
🍐 प्रबल जिज्ञासा🍐
*इस बात का क्या प्रमाण है कि आत्महत्या नहीं होती ?*
🍐सम्यक् समाधान🍐
सबसे बड़ा प्रमाण है सत्य सनातन धर्म की *धर्म पुस्तक वेद*।वेद मंत्रों में स्पष्ट लिखा है कि जीवात्माओं की तीन ही गति होती है।
*[१]* जो लोग पाप कर्म करते हैं उनकी *आत्मा का हनन होकर* पुनर्जन्म में पशु आदि नीच योनियों में जन्म होता है।
*[२]* जो लोग उत्तम कर्म करते हैं उनकी *आत्मा का उत्थान होकर वो मानव शरीर* में आकर जीवन जीते हैं।
*[३]* जो लोग मानव शरीर में आकर १००% निष्काम कर्म करते हैं उनकी *आत्मा अपने परं लक्ष्य मोक्ष* को पा जाती है। इस विषय में निम्न वेद मंत्र प्रमाण है।
📚 यजुर्वेद का प्रमाण📚
*ओ३म् असूर्या नाम ते लोका,अंधेन तमसावृता।*
*तांस्ते प्रेत्यापिगच्छन्ति,ये के चात्महनो जना।।यजु०४०/३।।*
✍️ मंत्र का अर्थ देखें✍️
[१] *ये के चात्महनो जना:=* जो लोग आत्मा का हनन करते हैं वो लोग।
[२] *असूर्या नाम ते लोका:=* वे लोग मरने के बाद अंधकार युक्त (पशु आदि ज्ञान रहित लोक यानि योनियों) में जन्म लेते हैं।
[३] *अंधेन तमसा वृता: =* ये पशु आदि नीच योनियां अंधकार यानि अज्ञान से आच्छादित हैं।
[४] *तांस्ते प्रेत्यापि गच्छंति =* इस प्रकार आत्मा का हनन करने वाले ही इन अविद्याजनित लोकों में भोगी,विलासी,कुकर्मी आत्मायें जाती हैं।
इस प्रकार वेदमंत्र में बताया गया है कि *आत्मा की हत्या नहीं आत्मा का हनन* होता है।हनन का मतलब *पुनर्जन्म में निम्न योनियों* में जन्म लेना होता है।इस प्रकार आज हमने आत्मा के बारे में जो *लोक में भ्रांति फैली है कि आत्मा की हत्या होती है* उसका निवारण किया है। इस प्रकार *ज्ञानकुंभ में स्नान* करने पर ही पता लगेगा कि *आत्म हत्या व आत्म हनन* में क्या अंतर है? शेष परिचर्चा कल………..
आचार्य सुरेश जोशी
*वाटसप गुरुकुल महाविद्यालय* आर्यावर्त्त साधना सदन दशहरा बाग उ०प्र०