300 वर्ष पुराना शिव मंदिर जहां पूरी होती है भक्तों की मनोकामना

सेउता (सीतापुर)(आरएनएस )। सावन 2023 प्रारंभ तिथि- श्रावण के रूप में संदर्भित, यह त्योहार भगवान शिव और देवी पार्वती का सम्मान करता है और 2023 में 4 जुलाई से 31 अगस्त तक मनाया जाएगा। इस वर्ष, सावन दो महीने की अवधि तक चलेगा, जो इसके बाद दुर्लभ है। लगभग दो दशक. इस बढ़ाव का श्रेय मलमास महीने को शामिल किए जाने को दिया जाता है, जो चंद्र चक्र के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए हिंदू चंद्र कैलेंडर में डाला गया एक अतिरिक्त महीना है। चूंकि 2023 में यह अतिरिक्त महीना मौजूद है। इसलिए सावन का उत्सव सामान्य अवधि की तुलना में एक महीने लंबा हो जाएगा। नतीजतन, भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित पारंपरिक चार सोमवार और चार मंगलवार के बजाय, 2023 में इन देवताओं की स्मृति में आठ सोमवार और आठ मंगलवार की बहुतायत देखी जाएगी। हिंदू चंद्र कैलेंडर के पांचवें महीने में पड़ने वाला प्रत्येक सोमवार (श्रावण सोमवार) भगवान शिव को समर्पित है, और सावन के महीने के दौरान प्रत्येक मंगलवार देवी पार्वती को समर्पित है। मंगलवार को देवी पार्वती के लिए व्रत रखने का प्राविधान है। शिव शक्ति धाम मोइया जो कि गांजर क्षेत्र के मौजूद शिव मंदिरों में सर्वाधिक प्राचीन मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व तात्कालिक राजा मल्लापुर के सिपहसालारों में शामिल मोइया निवासी हरिपाल सिंह और महिपाल सिंह नाम के दो भाइयों द्वारा करवाई गई थी। मंदिर बनवाने के लिए हरिपाल सिंह और महिपाल सिंह ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के विद्वान आचार्यों को बुलाकर विधिवत नींव पूजन करवाया गया। जिसके बाद लगभग 3 वर्ष के निरंतर निर्माण कार्य के बाद भव्य मंदिर का निर्माण संपन्न हुआ। मंदिर निर्माण के लिए मुगल निर्माण शैली जिसमें पनपत्थी ईंटों के साथ सुर्खी चूना राबिस आदि सामग्री का प्रयोग किया गया। मंदिर निर्माण के बाद भगवान शंकर का स्वेत विग्रह (शिवलिंग) पुनः काशी के विद्वानों द्वारा 9 दिन के पूर्ण विधिविधान पूजन के उपरांत स्थापित हुआ। मंदिर के सम्मुख ही कुएं का निर्माण भी करवाया गया जहां आने वाले आगंतुकों और दर्शनार्थियों को स्नान और पीने के पानी की सुलभता हो सकी। मंदिर निर्माण के बाद निरंतर दरबार की ख्याति में समाज की तमाम कहानियां जुड़ती चली गईं।
लोगों की पूरी होती मन्नतें, और मंदिर की भव्यता ने समूचे क्षेत्र में मंदिर की प्रतिष्ठा और मान्यता बढ़ाई। लोगों की आस्था ही है कि जो फैसले और पंचायतें देश की अदालतों में वर्षों चलते हैं उनका फैसला भगवान शंकर के दरबार में मिनटों में होता है, समूचे क्षेत्र में यह मान्यता है कि यदि भगवान शंकर के दरबार में किसी फैसले को नियत किया जाता है और उसमें किसी भी पक्ष में गलत तरीके से कसम खा ली तो उसका फल भी निश्चित ही प्राप्त होता है। जिस कारण मंदिर में कसम खाने वाले भक्तों का निरंतर आवागमन बना रहता है और तमाम फैसले भी होते रहते हैं। कालांतर में मंदिर जीर्ण हुआ और लोगों ने मंदिर की जीर्णोद्धार की बात भी उठाई। जिस पर वर्ष 1977 में हरिपाल सिंह के पौत्र मोइया निवासी शिव बक्श सिंह ने ग्रामवासियों के सहयोग से करवाया, और तात्कालिक पुजारी की भूमिका निभा रहे भारत सिंह ने भी जन सहयोग से निरंतर यज्ञ सहित मेला आदि का आयोजन निरंतरता से करवाया जाता रहा। जो वर्तमान में पुनः भक्तों के सामूहिक सहयोग से संपन्न होने लगा है। मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार शिव बक्श सिंह के पौत्र राहुल सिंह ने सामूहिक सहयोग से वर्ष 2014 में प्रारंभ किया। जिससे नित प्रति भक्तों का जुड़ाव बढ़ता ही चला गया, और मंदिर की ख्याति भी चहुं ओर कीर्तिमान हुई। सावन के महीने में हजारों हजार की संख्या में भक्त चहलारी घाट और मल्लापुर घाट से जल भरकर कांवर यात्रा करते हैं। साथ ही दर्शनार्थियों का तांता पूरे महीने लगा रहता है। यात्री सुविधा का ख्याल रखते हुए मंदिर में यात्री विश्राम हेतु एक लंबे हाल और बरामदे का भी निर्माण करवाया गया है। साथ ही पेयजल आदि की भी व्यवस्था सुदृढ़ की गई है। लगभग एक एकड़ में फैले मंदिर परिसर में तमाम छायादार वृक्ष गर्मी के मौसम में बेहद आरामदायक सुविधा भक्तों को प्रदान करते हैं। साथ ही हजारों पक्षियों को रहने का आसरा भी प्रदान करते हैं। मंदिर व्यवस्थापक राहुल सिंह मंदिर परिसर में ही गौरैया संरक्षण का भी काम करते हैं, और विलुप्त हो रही गौरैया पक्षी के तमाम घोसले भी आपको विभिन्न पेड़ों पर मौजूद मिलते हैं। भगवान शिव के इस दरबार में निर्माण के दरम्यान बनाई गई नक्काशी और मूर्तियां धार्मिक तमाम कहानियों का चित्रित वर्णन करती हैं। जिसमें मंदिर के बाहरी आवरण पर बनी हुई कालिया नाग मर्दन दृश्य, सम्मुख विराजमान भगवान नरसिंह सहित तमाम देवी देवताओं का सुंदर चित्रण हैं। साथ ही मंदिर के ठीक सामने बनी भगवान शंकर की भव्य दक्षिणमुखी प्रतिमा मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती है।

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