बस्ती। सरस्वती विद्या मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रामबाग की वन्दना सभा में आज श्री गुरु पूर्णिमा उत्सव हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री गोविंद सिंह जी ने दीप प्रज्ज्वलन एवं महर्षि वेद व्यास की तस्वीर पर माल्यार्पण किया।
विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री गोविन्द सिंह जी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि आज गुरु पूर्णिमा है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’का अर्थ है दूर करने वाला। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु को महत्व देने के लिए ही महान गुरु वेदव्यास जी की जयंती पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान शिव द्वारा अपने शिष्यों को ज्ञान दिया गया था।
उन्होंने कहा आज के समाज में ऐसे गुरु की जरुरत है जो शिष्य के विकारों को दूर कर सके।
विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य श्री विनोद सिंह जी ने गुरु पूर्णिमा पर्व पर विस्तार से बताते हुए कहा कि इस दिन कई महान गुरुओं का जन्म भी हुआ था और बहुतों को ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी। इसी दिन गौतम बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया था।
ज्ञात हो कि आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह पर्व जून से जुलाई के बीच में आता है। इस पर्व को हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोग भी मनाते हैं। माता और पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हैं, पर गुरु सभी को अपने बच्चों के समान मानकर ज्ञान देते हैं।
उन्होंने गुरु पूर्णिमा पर्व पर महाभारत और पुराणों के रचियता महर्षि वेद व्यास के जन्म की पौराणिक कथा का भी वर्णन किया।
उन्होंने आगे कहा कि गुरु मंदबुद्धि शिष्य को भी एक योग्य व्यक्ति बना देते हैं। संस्कार और शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है। इनसे वंचित रहने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है। गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता है। हमारा जीवन गुरु के अभाव में शून्य होता है। गुरु अपने शिष्यों से कोई स्वार्थ नहीं रखते हैं, उनका उद्देश्य सभी का कल्याण ही होता है। गुरु को उस दिन अपने कार्यो पर गर्व होता है, जिस दिन उसका शिष्य एक बड़े स्थान पर पहुंच जाता है।
अंत में उन्होंने कहा कि अपने समाज में हजारों सालों से, व्यास भगवान से लेकर आज तक, श्रेष्ठ गुरु परम्परा चलती आयी है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं, श्रद्धा से, भक्ति से वंदना करते हैं, अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं। इसी कारण अनेक आक्रमणों के बाद भी अपना समाज, देश, राष्ट्र आज भी जीवित है। समाज जीवन में एकात्मता की, एक रस जीवन की कमी है। राष्ट्रीय भावना की कमी, त्याग भावना की कमी के कारण भ्रष्टाचार, विषमय, संकुचित भावनाओं से, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, शोक रहित (चारित्र्य दोष) आदि दिखते हैं।
इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गुरु स्थान पर भगवाध्वज को स्थापित किया है। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है।
इस अवसर पर विद्यालय के समस्त आचार्य एवं कर्मचारी बन्धु उपस्थित रहे।