आखिर क्यूँ ___
आखिर क्यूँ तुम उसे
अबला समझते हो—
जिसने तुझे माँ का रूप लेकर
इस दुनिया में लाई ।
आखिर क्यों तुम उस पर
हुकुम चलाते हो
जिसने बहन बनकर तेरी सूनी कलाई को
अपने प्यार की राखी से सजाई।
आखिर क्यूं तुम उसे आंखें
दिखलाते हो जिसने
भाभी बनकर तुम्हारी
हर ख्वाहिश पूरी करबाई ।
आखिर क्यूं तुम उसे हर
बात पे रोक-टोक करते हो
जिसने पत्नी बनकर तेरा
हर-पल तुम्हारा साथ निभाया
तुझे समाज में एक पिता
होने का ओहदा दिलबाया
तुझे तेरी जिम्मेदारियों से
रु ब रु करवाया ।
जिसने तुम्हारी हर छोटी से छोटी
खुशियों का ख्याल रखा ।
आखिर क्यूं तुझे लज्जा नहीं आती
जिसने तुझे मान – सम्मान दिलाया
तुम उसे ही अबला समझते हो —–
आखिर क्यूँ ?
अरे जिसने तुम्हारी फरमाईश
पूरी करने के चक्कर में कभी
खुद का ख्याल नहीं रखा
आज तुम उसे ही अबला समझेन लगे।
ये कैसा झूठा अहंकार
है तुम्हारा जो तुम स्त्री को
सिर्फ अबला समझते हो।
मे कैसा पुरुषत्व है तेरा जो
झूठी शान की खातिर तुम
पूरी स्त्री जाति को मात्र
दया का पात्र समझते हो।
संजुला सिंह”संजु”
जमशेदपुर