ईश्वरीय वाणी वेद -आचार्य सुरेश जोशी

🏇 *ओ३म्*🏇
🐂 ईश्वरीय वाणी वेद 🐂
*ओ३म् पावका न: सरस्वती वाजेर्भिर्वाजिनीवती ।यज्ञं वष्टु धियावसु: ।*
।। ऋग्वेद १/३/१०।।

*मंत्र का पदार्थ*🌴
( वाजेभि: ) जो सब विद्या की प्राप्ति के निमित्त अन्न आदि पदार्थ हैं, और जो उनके साथ ( वाजिनीवती ) विद्या से सिद्ध की हुई क्रियाओं से युक्त ( धियावसु: ) शुद्ध कर्म के साथ वास देने और ( पावका ) पवित्र करने वाले व्यवहारों को चिताने वाली ( सरस्वती ) जिसमें प्रशंसा योग्य ज्ञान आदि गुण हों ऐसी उत्तम सब विद्याओं की देने वाली वाणी है,वह हम लोगों के ( यज्ञम् ) शिल्प विद्या की महिमा और कर्म रुप यज्ञ को ( वष्टु ) प्रकाश करने वाली हो!
🌸 *मंत्र का भावार्थ*🌸
सब मनुष्यों को चाहिए कि वे ईश्वर की प्रार्थना और अपने पुरुषार्थ से सत्य विद्या और सत्य वचन युक्त कामों में कुशल और सबके उपकार करने वाली वाणी को प्राप्त रहे,यह ईश्वर का उपदेश है।
🏵️ *मंत्र का सार तत्व*🏵️
वेद के इस पावन मंत्र में तीन शब्द *प्रार्थना, पुरुषार्थ,यज्ञ* दृष्टब्य हैं। *प्रार्थना* प्रार्थना का अर्थ ईश्वर से है।आप कोई भी छोटा या बड़ा काम करें उसके लिए परमात्मा से प्रार्थना अवश्य करें क्योंकि प्रार्थना करने से *अभिमान* नष्ट होता है। अक्सर लोग प्रार्थना उस स्थिति में करते हैं जब उन्हें यह अनुभव हो जाता है कि मेरे वश का नहीं है ऐसे समय में की गई प्रार्थना को चापलूसी कहते हैं। अतः कार्य सरल हो या कठिन प्रथम प्रार्थना जरूरी है जिससे मनुष्य में अभिमान न आये।
दूसरा शब्द है *पुरुषार्थ* यह भी रहस्य मय है।जो लोग कहते हैं कि हमने खूब प्रार्थना की मगर ईश्वर सुनता नहीं है।इसी शंका का समाधान परमात्मा वेद मंत्र से कर रहा है कि जो लोग पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें प्रार्थना करने अनुमति ही नहीं है। प्रार्थना वहीं सुनी जाती है जो पुरुषार्थ के बाद की जाती है।अब इसे इस तरह समझें। कार्य करने से पहले जो प्रार्थना है उसका नाम *ईश्वर को सूचित करना है* पुरुषार्थ के बाद जो प्रार्थना है उसे *ईश्वर की सहायता लेना* कहा जाता है।
तीसरा शब्द है *यज्ञ* यहां पर परमात्मा कर्मकांड में लिप्त रहने वाले पुरोहितों को संकेत कर रहा है कि केवल *अग्नि में घी, सामग्री जलाकर कर स्वाहा स्वाहा करना ही यज्ञ* नहीं है। अपितु जितने भी परोपकार के काम हैं। राष्ट्र प्रेम है। मधुर वाणी है।ये सब *यज्ञ* ही हैं।इनकी उपेक्षा करके केवल। *हवन* से मानव याज्ञिक नहीं बनता। अतः अच्छा याज्ञिक बनने के लिए *कर्मों में कुशलता*लाना अनिवार्य है।इसके लिए *सेवा, परोपकार, संगठन, सहयोग, सहृदयता* जैसे मानवीय गुणों पर आचरण करना ही होगा।
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*

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