तनिक देर तो ठहरो

“तनिक देर तो ठहरो”

हे मन तनिक देर तो ठहरो,

वचपन में तितली के पीछे।

भये किशोर नयी धुन जागी,

दौड़ पड़े कलियों के पीछे।

जीवन के संकरी गलियों में,

कितने अंध मोड़ मत दौड़ो॥१

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

काली कमरिया से उचटे,

धवले पटन के पीछे भागे।

कदम- २ पर पीछे हम पर, 

तुम हरदम ही आगे आगे।

अब पकड़े की तब पकड़े,

कौनो जतन नहीं है रव भव॥२

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

मिले हुये से हरदम रूठे,

दूर लगे फल लगते मीठे।

जो भी मिला तुम्हारी रट से,

उसे अगले पल ही त्यागे।

क्यों इतनी गति से हो चलते,

इस काया की गति तो सोचो॥३

हे मन तनिक देर तो ठहरो……..

 

निशि – वासर भी चैन नहीं है,

यह पता नहीं कब बीते बर्षो।

शत वर्षों का जीवन लगता,

जैसे आज और कल परसों।

जीवन में कितना विप्लव है,

जरा सोचो और विचारो॥४

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

हुआ विहान भोर को त्यागे,

दिन भर न जाने क्यों भागे।

नींद विहीन रात भर जागे,

प्रति पल ही बिनु पग भागे।

तुम अथक अनंत अनादि हुये,

पर कुछ मोरे पन भी देखो॥५

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

पैदल से वाहन को चाहो,

वाहन मिले तो व्योम सराहो।

व्योम की सैर किये फिर भी,

तुम चाँद और मंगल को चाहो।

है चाह के धुन का छोर नहीं,

तुम कुछ तो धरम निवाहो॥६

हे मन तनिक देर तो ठहरो……..

 

भगवत भजन की लय लागी,

तुम लक्ष्य नया संधान किये।

मुश्किल से मिला संत संगति,

पर उसको भी तुम त्यागे। 

अंतहीन तुम पथ चुनते हो,

पीड़ित काया के दुख सोचो॥७

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

यह जीवन पूरा चक्र किया,

श्वांस तलक भी तक्र हुआ।

चलत बेर भी शिथिल नहीं हो,

तुम रह रह कर और पुकारो।

चाह के मारे आगम निश्चित,

अब कुछ तो दया विचारो॥८

हे मन तनिक देर तो ठहरो…….

 

बाल कृष्ण मिश्र कृष्ण

१२.०३.२०२४

बूंदी राजस्थान

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