अपने जन्म दिवस पर समर्पित रचना

*मेरे जीवन के उद्देश्य (अपने विषय में)* 

 

*मैं क्या हूँ?*

 

दीन दुखी के उर के भीतर, वर्मा करता सदा बसेरा।

और मरीजो की सेवा में सदा समर्पित जीवन मेरा।।

 

जनमानस की व्यथा देखकर मेरी आँखे भर आती है।

जड़ता दूर भगाने में ही मेरी संज्ञा सुख पाती है।।

 

मेरा जीवन अलग-थलग है सदा व्यथित का हाथ गहा हूँ।

मैं समाज के हर प्राणी के प्रति संवेदनशील रहा हूँ।।

 

’’डा0 वर्मा’’ भावुकता की धारा में ही, सदा बहा है।

सिर्फ कर्म की पूजा करना, जीवन का उद्देश्य रहा है।।

 

जीवन का अभिप्राय यही है, मैं समाज के आऊँ काम।

करूँ तपस्या, कर्मठता से खानदान का ऊँचा नाम।।

 

मानवीयता का पोषक हूँ, करता यही हमेशा आस।

जो आये खुशहाली दे दूँ, मेरा रहता यही प्रयास।।

 

 

* * *

शाश्वत गीतिका

 

हे मेरे प्यारे मन मीत।

हुई अचानक तुमसे प्रीत।

पर तुम‌को जब से है पाया,

गाने लगा प्यार के गीत।

चलने लगा सत्य के पथ पर,

होता मुझको यही प्रतीत।

आया कैसा दुखद बुढ़ापा,

गये जवानी के दिन बीत।

भले बुलन्दी पर पहुँचो तुम,

पर मत भूलो कभी अतीत।

संघर्षों से लड़ो निरन्तर,

कभी न हो रिपु से भयभीत।

यह विश्वास रहे कि इक दिन,

होगी सच्चाई की जीत।

कलियों के अधरों पर भौरे,

रचने लगे प्रणय के गीत।

लगता है मधु‌मास आ गया,

घर आया गोरी का मीत।

देखो पूरब से धरती पर,

उतर रही हैं किरणें पीत।

अपनाना ही होगा “वर्मा”,

सबको आज विदुर की नीत।

बड़े-बड़े राजा महराजा,

आज हो गये कालातीत।

 

*डा. वी. के. वर्मा*

सामाजिक कार्यकर्ता/आयुष चिकित्साधिकारी, जिला चिकित्सालय बस्ती।

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