अपनी कल्पना के भारत की तश्वीर बनाने की आजादी :
देश आजादी के 75 वर्ष पूर्ण कर चुका है और इसी उपलक्ष में हम सब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है। इन 75 वर्षो की उपलब्धियों पर हमें चिन्तन करते हुये उन संकल्पों पर चलना है जो स्वतंत्र भारत के सपनों को साकार करने की प्रेरणा दे। हमें स्वत्व का जागरण करते हुये अलक्षित नायक, अलक्षित आन्दोलन और अलक्षित स्थलों को केन्द्र में लाना है और भारत की संकल्प शक्ति, जिजीविषा और आत्मनिर्भरता का मूल्यांकन करना है।
वास्तव में स्वतंत्र रहना मनुष्य का प्रकृत धर्म है परन्तु जागरूकता के अभाव में स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह पाती। हम आज जिस आजादी का अनुभव और आनन्द ले रहे है वह भारत के अनेकों नायकों तथा मतवालों द्वारा सैकडो वर्षो के संघर्ष का परिणाम है जहॉं न धार्मिक भेदभाव था, न वेशभूषा और विचारधारा की भिन्नता, न कोई भाषायी पक्षपात और क्षेत्रीय संकीर्णता। उस समय सभी के हृदय में देशभक्ति की एक ज्वाला प्रज्ज्वलित थी, एक दृढ़ निश्चय था जिसने सबको एक सूत्र में बॉंध रखा था।
इस आलेख का मकसद आजादी के उस मर्म को बतलाना है जो हमारे मन में बसता है और जिसकी वजह से हम अपने देश का एक काल्पनिक खाका खीचतें है। जाहिर है मन में बसी हुई आजादी ही हमारे कामों और विचारों की दशा-दिशा तय करती है। आजादी के 75 वर्षों बाद भारत इस बात को खूबसूरत तरीके से जानता है कि उसे परिवर्तन की राह पर बढने के लिए न तो किसी नारे की जरूरत है और न ही किसी के वादे की। दिल्ली जैसे महानगरों की चौडी सडकों से लेकर जामताडा की तंग गलियों तक बदलाव की बयार बह रही है। एक तरफ एक अनजान छोटे से गॉव की फैशनपरस्त लडकी पेरिस के एक भब्य फैशन शो में कैमरे की चकाचौध रौशनी का सामना कर रही होती है, तो महानगरों में पले-बढे तथा तकनीकी रूप से दक्ष एक युवा के दिल में गॉव की बंजर जमीन पर बहार लाने का सपना भी तैर रहा होता है। ये आजाद सोच ही हमें समझाती है कि हम बदल रहे है। बदलाव की यही बयार और यात्रा जिन्दगी में आजादी का सफर भी है।
यह बात दिगर है कि अपनी ही कल्पना के भारत में जीने की आदत के साथ देश के करोडों लोगों के लिए आजादी के सपने निश्चित रूप से अलग-अलग है। यहॉ देश की आजादी से लेकर घुटनों के दर्द से आजादी, किराए से आजादी, असीमित कॉल करने की आजादी, जमकर खरीदारी की आजादी तक सब कुछ है। वैसे आजादी इतना सक्र्रिय और गतिशील शब्द है कि इसमें समाजशास्त्र, विज्ञान, धर्म और आध्यात्म तक की झलक मिलने लगती है। आध्यात्म की शुरूआत ही आजादी के इस बिन्दु से होती है कि दूसरों को स्वतन्त्र करों जिससे तुम खुद स्वतन्त्र हो सको। ओशो आजादी को समाज की समानता से जोडकर देखते है- स्वतन्त्रता है तो समानता के लिए संघर्ष कर सकते है लेकिन अगर स्वतन्त्रता नही है तो समानता के लिए संघर्ष करने का कोई उपाय आदमी के पास नही रह जाता है।
लेकिन सामाजिक और अन्य परिस्थितियों से अलग मन के आजादी की एक अलग दास्तॉ है। मनोवैज्ञानिक आजादी को शरीर के अन्तर्मन से जोडकर देखते है। एक छोटा बच्चा पहली बार कुछ शब्द बोलता है और वह खुशी से चहकने लगता है। यह खुशी बच्चे को एक अलग तरह की आजादी का एहसास कराती है। एक नौजवान जब अपने कैरियर की सीढी पर आगे बढते हुए अपने पैरों पर खडा हो जाता है तो उसे जो खुशी का एहसास होता है वह भी एक किस्म की आजादी ही है। यानि हर किसी के मन में पहले आती है- आजादी। दर्शनशास्त्र के विद्वान से पूछे तो वह कहेंगे- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। तो जिन्दगी में जीत की कहानी भी यहीं से शुरू होती है और बदलाव की बयार भी यही से बहती है। आज आजादी के 75 वर्षों बाद वैश्विक मानचित्र पर भारत की जो रंगीन तश्वीर उभर रही है, वह लोगों के मन की कूंची से ही तो बनती है। यह बात दीगर है कि शुद्ध भोजन और पानी, बुनियादी स्वास्थ्य सेवा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जैसे अनेक मुद्दे है जिनपर बहुत कुछ होना बाकी है, मगर आजादी की याद हताशा में डुबने के लिए नही होती। यह वक्त कल्पनाशील भविष्य और संभावनाओं की ताकत में निवेश कर मन को एक लंबी छलांग के लिए तैयार करने का होता है। यह वक्त होता है अपनी कल्पना के भारत की तस्वीर बनाने की।
आजादी मिलने के 75 वर्षों बाद भी आज हम अपने देश की आजादी के संधर्षो के इतने करीब है कि इसके उत्साह को हम आज भी महसूस करते है। हमें गर्व है कि इसकी पृष्ठभूमि हमारी ऑंखों के सामने है लेकिन अवश्य ही हमें इसका विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि हमारे अतीत, वर्तमान और भविष्य अविभाज्य रूप से इसके साथ जुडे है।