एकनिष्ठ भक्ति जागृत होने पर मिट जाती हैं भक्त और भगवान के बीच की दूरी- उमाशंकर जी महराज

एकनिष्ठ भक्ति जागृत होने पर मिट जाती हैं भक्त और भगवान के बीच की दूरी- उमाशंकर जी महराज

भक्त को भगवान के समक्ष अबोध बालक की तरह जाना चाहिये, ज्ञानी बनकर नहीं- उमाशकर जी महराज

भक्तों में भेद नही करते सांईनाथ, इसलिये है वैश्विक विस्तार- उमाशंकर जी महराज

बस्ती । सांई कृपा संस्थान की ओर से गांधीनगर स्थित गौरीदत्त धर्मशाला में तीन दिवसीय साईं कथा के दूसरे दिन प्रख्यात कथावाचक उमाशंकर जी महराज ने कहा कि भक्त के भीतर एकनिष्ठ भक्ति जागृत हो जाती है तो भक्त और भगवान के बीच की दूरियां खत्म हो जाती हैं। इसके बाद ही भगवान का भक्त से साक्षात्कार होता है। कथा को विस्तार देते हुये उन्होने कहा कि सांईनाथ के प्रति जिसकी श्रद्धा है वह कभी निराश नही होता, साईंनाथ उसकी इच्छा जरूर पूरी करते हैं। शिरडी मे लाखों भक्त प्रतिवर्ष जाते हैं और बाबा के दरबार मे हाजिरी लगाते हैं।

 

उमाशंकर जी महराज ने कहा साईंनाथ ने समाज को कभी जातियों या धर्म मे बांटने का प्रयास नही किया। उन्होने इंसानियत को सर्वोपरि रखा और हर शरणागत की मदद की चाहे वह किसी भी जाति धर्म या सम्प्रदाय से हो। सांईनाथ के इसी लोककल्याण की मंशा ने उनकी प्रासंगिकता को वैश्विक बना दिया। यही कारण है कि भारत ही नही विश्व के तमाम देखों में उनके करोड़ों भक्त हैं। उनके जीवन मे सशक्त समाज और राष्ट्र का प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ता है। उमाशंकर जी महराज ने ‘कहा भक्त के पास अबोध बालक की तरह जाना चाहिये। खुद का ज्ञानी समझने वाला कभी भगवान के करीब नही हो सकता। तेरी चाहत मे जग छूट गया, फिर क्यों तूं क्यों मुझसे रूठ गया’ जैसे अनेक भजन प्रस्तुत कर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया।

 

दूसरे दिन की कथा में सदर विधायक महेंद्र नाथ यादव, श्रीमती रचना यादव, भोलेंद्र कुमार श्रीवास्तव, सुजाता श्रीवास्तवा, वीरेंद्र श्रीवास्तव, आरती श्रीवास्तवा मुख्य यजमान रहे। इस अवसर पर अनेक गणमान्यों ने कथा को सार्थक व सफल बनाने के लिये पूरे मनोयोग से सेवादारी की। सांई कृपा संस्थान के संतकुमार नंदन ने सांई भक्तों से कथा को सफल बनाने की अपील किया है। डा. प्रकाश श्रीवास्तव, मनोज कुमार श्रीवास्तव, रमेशचन्द्र श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव, राजेश उर्फ दीपू सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं ने संगीतमयी साईंकथा का रसपान किया। प्रसाद वितरण और भण्डारे के साथ देर रात दूसरे दिन की कथा का विश्राम हुआ।