गुफ्तुगू करने से पहले मुझे आदाब करे, मेरी मुरझाई तबीयत को वोह शादाब करे, अमजद रहमानी,,,

गुफ्तुगू करने से पहले मुझे आदाब करे, मेरी मुरझाई तबीयत को वोह शादाब करे, अमजद रहमानी,,,,,,,,

अनुराग लक्ष्य, 27 नवंबर

सलीम बस्तवी अज़ीज़ी

मुम्बई संवाददाता ।

कहते हैं कि ग़ज़ल जब अपने फिक्र ओ फन के दायरे से बाहर निकल जाती है तो वोह समाज अवाम और समायीन से सीधे गुफ्तुगू करने लगती है। ऐसे मुकाम पर पहुंचकर कोई भी शायर अदब की ज़मीन हमवार कर लेता है।

ऐसा ही एक सच्चा कलमकार उत्तर प्रदेश के ज़िला सिद्दार्थ नगर से अमजद रहमानी की शक्ल में जाना और पहचाना जा रहा है। जिसने बहुत ही कम समय में अपने मयारी कलाम से समायीन के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गया है।

मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ब्यूरो प्रभारी अनुराग लक्ष्य मुंबई आज ऐसे ही एक सच्चे कलमकार की एक ख़ास ग़ज़ल से आपको रूबरू करा रहा हूँ ।

1 / गुफ्तुगू करने से पहले मुझे आदाब करे,

मेरी मुरझाई तबीयत को वोह शादाब करे ।

2 / मैं खिंचा जाता हूँ बिन डोर उसी की जानिब,

उसकी आंखों की कोशिश क्यों मुझे बेताब करे ।

3 / उसके जलवों की चमक चांदनी रातें जैसे,

उसके जलवों से हसद आज भी महताब करे ।

4 / एक तू है कि तुझे याद न आई उसकी,

एक वोह शख्स तेरी यादों को नायाब करे ।

5 / मेरे किरदार के दामन में क़हत साली है,

तेरा किरदार तो दरिया को भी सैराब करे ।

6 / तेरी यादों ने मेरी नींद उड़ा दी ऐसे,

रात भर गुफ्तुगू अब आंखों से महताब करे ।

7 / आँख रोने पे जो आए तो बहा दे दरिया,

कितने सूखे हुए सहराओं को ग़र्क़ाब करे ।

8 / दिल तेरे इश्क़ में बर्बाद हुआ है ,अमजद,

जैसे बर्बाद किसी चेहरे को तेज़ाब करे ।

पेशकश,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ब्यूरो प्रभारी अनुराग लक्ष्य मुंबई ।