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पुस्तक का नाम:- यमराज मेरा यार
रचनाकार:- श्री सुधीर श्रीवास्तव जी गोंडा उत्तर प्रदेश
प्रकाशक:- लोक रंजन प्रकाशन प्रयागराज
मूल्य:- 240/-
सर्वप्रथम में आ. सुधीर श्रीवास्तव जी गोंडा उत्तर प्रदेश को उनके द्वारा सृजित पुस्तक “यमराज मेरा यार” के प्रकाशित होने पर हार्दिक बधाई देता हूँ। मुझे यह एकल संग्रह कुछ महीने पूर्व ही प्राप्त हो गया था किंतु समय अभाव के कारण इसका अध्ययन नहीं कर पाया जिसके कारण इसकी समीक्षा करने में विलंब हुआ क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि जब तक किसी कृति को पूरा पढ़ा ना जाए तब तक उसकी समीक्षा करना बेमानी ही है।आदरणीय श्रीवास्तव जी का यह सृजन हास्य व्यंग के रूप में है जो हमें गुदगुदाता भी है और सोचने पर भी मजबूर करता है।इस काव्य संग्रह में श्रीवास्तव जी की कुल 44 रचनाएँ हैं, जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं, के साथ-साथ हिंदी साहित्य के विभिन्न विद्वानों की समीक्षाओं का भी समावेश किया गया है।
काव्य संग्रह का प्रारंभ भगवान श्री गणेश को समर्पित दोहों से होता है एक वानगी देखिए
पूजन प्रथम गणेश का,शुरू करें शुभ काम।
देव और फिर पूजिए,सुखद मिले परिणाम।।
गणपति की कर वंदना,करें शुरू जो काम।
काम सभी तब पूर्ण हो,मन जिसका निष्काम।।
रचनाकार ने अपनी बात शीर्षक में उल्लेख किया है कि वे 1985 से सतत लेखन कर रहे हैं इससे स्पष्ट है कि उनको लेखन का लगभग 40 वर्ष का बृहद अनुभव प्राप्त है।
गणपति वंदना के अतिरिक्त उन्होंने उनके कुल देवता भगवान श्री चित्रगुप्त जी को भी दोहांजलि कुछ इस तरह से प्रस्तुत की है।
चित्रगुप्त होते जहाँ,शीश झुकाओ मित्र।
खुशियों के फिर रोज़ ही,खूब बना चित्र।।
चित्रगुप्त का नाम लो,रोज़ सुबह अरु शाम।
मस्त मगन करते रहो,अपने सारे काम।।
इसी प्रकार अपने गुरुदेव के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कुछ दोहे लिखे हैं जो बड़े ही भावपूर्ण बन पड़े हैं।
यमराज का ऑफर, यमलोक यात्रा पर जरूर जाऊँगा, यमराज का हुड़दंग, यमराज की नसीहत, यमराज का यक्ष प्रश्न आदि शीर्षकों से रचनाकार ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से अपनी बात बड़े ही श्रेष्ठ तरीके से कही है। श्रीवास्तव जी ने यह एकल संग्रह उस दौर में लिखा है जबकि वे शारीरिक परेशानी से जूझ रहे हैं।दो-दो बार पक्षाघात होने पर भी उनकी कलम एक दिन के लिए भी नहीं रुकी है यह उनका साहित्य के प्रति प्रेम एवं जीवन के प्रति सकारात्मक को दर्शाता है।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि आ. सुधीर श्रीवास्तव जी द्वारा सृजित “यमराज मेरा यार” एकल संग्रह हिंदी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा एवं भविष्य में भी आदरणीय की अन्य कृतियों को पढ़ने का लाभ हम पाठकों को प्राप्त होता रहेगा।
“भविष्य के लिए शुभकामनाओं के साथ”
समीक्षक
सुरेंद्र शर्मा सागर
श्योपुर मध्य प्रदेश