सुबह आई है तो कुछ ख़्वाब सुहाने देगी, नए अंदाज़ में जीने के बहाने देगी, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,,


अनुराग लक्ष्य, 17 फरवरी
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
सामयीन आप यक़ीन मानें कि ग़ालिब मीर फैज़ दाग और फ़ेराक़ गोरखपुरी से होती हुई शायरी जो मेरी दहलीज़ तक पहुंची, मैंने उससे बेपनाह मुहब्बत की और यह उसी के देन है कि मैं आज हिंदुस्तान के मायनाज़ हस्तियों के बीच खड़े होकर कुछ कहने और सुनने की जसारत करता हूँ। आज कुछ खास कतात और मुक्तकों के साथ आपसे रूबरू हो रहा हूँ।
,,,, अदीबों और कलमकारों की दौलत है ग़ज़लगोई,
फ़कीरों के लेबासों में शहंशाही दिलाती है ।
जिसे सुनकर ग़ुलामी के मनाज़िर याद आते हैं,
वोह बिस्मिल और ज़फ़र की याद में आंसू बहाती ह ।।,,,,,
,,,, सुबह आई है तो कुछ ख़्वाब सुहाने देगी,
नए अंदाज़ में जीने के बहाने देगी ।
साज़ ए दिल छेड़ के नग़्मों का सहारा देकर,
गुनगुनाने के लिए तुझको तराने देगी ।।,,,,,
,,,,, कुछ ख़्वाब अधूरे हैं अब भी,
कुछ राहें अभी अधूरी हैं ।
मंज़िल पे फिर भी पहुंचूंगा,
मेरे ख़्वाब अभी सिंदूरी हैं ।। ,,,,
,,,, अगर है ख्वाहिश तुम्हारे दिल की तुम्हारे आगे झुके यह दुनिया,
तो लाज़मी है तुम अपने सर को खुदा के दर पे झुकाए रखना ।
यह शान ओ शौकत वोह चांद तारे फलक भी तुमको नवाज़ देगा,
है शर्त इतनी खुदा के बन्दों से अपना रिश्ता निभाए रखना ।।,,,,
,,,, सलीम दिल की बहुत है ख्वाहिश कि सू ए तैबा को मैं भी जाऊं,
सबब ज़ईफी बनी यह अपनी बचा भी कुछ माल ओ ज़र नहीं है ।।,,,,,