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#विधा_पुस्तक_समीक्षा
डॉ रवींद्र वर्मा द्वारा रचित “चंदन माटी मातृभूमि की” पुस्तक का आवरण पृष्ठ अत्यंत आकर्षक है।ऊपर चौबीस तीलियों वाला चक्र और भारत माता का कल्पित चित्र लहराता तिरंगा देखकर मन में राष्ट्र प्रेम उमड़ने लगता है। इसी आवरण पृष्ठ पर घोड़े पर सवार वीर शिवाजी एवं महाराणा प्रताप की एकात्मकता की प्रतिमूर्ति राष्ट्रप्रेम की एकात्मकता प्रतिबिम्बित कर रही है। साथ में विशाल जनसमूह में भारतीय जन संमर्द के साथ हाथ ऊंचा कर कवि डॉ रवींद्र वर्मा जी की ओजस्विता मनमोहक लग रही है।
“चंदन माटी मातृभूमि की ” यह डॉ० वर्मा द्वारा रचित काव्य संग्रह है, जिसमें देशभक्ति की गीतिका और गीत व छंदबद्ध रचनाएं संकलित हैं।
पुस्तक का प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रकाशन अनुदान योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2023-24 में किया गया है।
आई एस बी एन 978-93-91454-55-8 है।
सर्वाधिकार ©लेखकाधीन है।
प्रकाशक- गोविंद पचौरी
जवाहर पुस्तकालय, हिंदी पुस्तक प्रकाशक एवं वितरक सदर बाजार, मथुरा 281001 उ.प्र. है।
दूरभाष 0989700951
ईमेल jwahar.pustkalay@gmai.com
पुस्तक का मूल्य -400(चार सौ रुपए मात्र)
प्रथम संस्करण -2023
आवरण -विनीत शर्मा
शब्द संयोजन – शालू कम्प्यूटर्स, शाहदरा दिल्ली 110032
( मो० नं० 9313588569)
मुद्रक- बालाजी प्रेस , नवीन शाहदरा, दिल्ली 110032
ये तो रही पुस्तक की प्रारंभिक जानकारी।
अब आते हैं पुस्तक समर्पण की ओर लेखक ने यह पुस्तक भारत राष्ट्र को समर्पित सभी बलिदानियों देश धर्म और स्वतंत्रता के लिए लड़े वीर क्रांतिकारियों और देश की अखंडता स्वाभिमान पर जीवन समर्पित करने वाले सभी महान पुरुषों को समर्पित किया है।
अगले पन्ने पर कवि को विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि की छवि चित्रांकित है।
पुस्तक की भूमिका में प्रोफेसर बीना शर्मा, निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान ने कवि की 108 कविताएं पढ़ते हुए पाठक की भाव-विभोर स्थिति का चित्रण करते हुए इस पुस्तक को पाठ्यक्रम में लगाये जाने की बात कही है।और यह भी स्वीकार किया है कि भावी पीढ़ी के निर्माण में यह पुस्तक योगदान करेगी।
पुरोवाक् में छंदों के मर्मज्ञ आचार्य ओम नीरव ने सभी रचनाओं की छंदबद्धता और छंदानुशासित रचनाकारों के लिए इस पुस्तक को प्रेरणा-स्रोत बताया है। विषय वैविध्य और छंद वैविध्य की चर्चा भी की है। गीतिका और गीत के लक्षण और अंतर भी बताए हैं।
प्रथित साहित्यकार डॉ राजीव रंजन मिश्र जी ने कवि के द्वारा रचित गीत, गीतिका, मुक्तक, दोहे और माहिया आदि की प्रशंसा की है। डॉ वर्मा की अनेक रचनाएं उद्धृत करते हुए उन्हें स्वतंत्र लेखनी का स्वामी कहा है।
अभिमत शीर्षक के अंतर्गत डॉ ब्रज बिहारी लाल बिरजू ने डॉ वर्मा के छंदों की विविधता,वर्ण्य विषय के वैविध्य और समाजोपयोगी सकारात्मक सोच की सराहना की है।
इसके उपरांत मेरी शुभकामनाएं हैं। तत्पश्चात सहृदय शुभकामनाएं शीर्षक प्रोफेसर डॉ शशि तिवारी प्रकाशन के लिए अग्रिम शुभकामनाएं प्रेषित किया है। गीत दोहे मुक्तक में ओज भावना की बात कही है। डॉ रुचि चतुर्वेदी ने लिखा है,”विश्वगुरु भारत की संकल्पना को समर्पित आपका शब्द – शब्द प्रणम्य है।” पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण जी ने विश्वास जताया है कि यह पुस्तक देशवासियों के मन में उत्साह और जोश भरेगी।साथ ही युवाओं के मन में सकारात्मक भाव तथा बलिदान की भावना पैदा करेगी। शुभ कामनाओं की अंतिम कड़ी में आदरणीय विजय गोयल जी ने कवि की सहज भाषा में भारतीय नव निर्माण सनातन मूल्यों की पहचान से परिचित कराने के लिए सराहना की है।
अपने मन की बात शीर्षक में कवि डॉ रवीन्द्र वर्मा जी ने यह स्वीकार किया है कि दैनिक जीवन में घटित छोटी-छोटी घटनाएं ही जब रचनात्मकता के कलेवर में प्रस्तुत होती हैं और यह रचनात्मकता बचपन के स्कूली दिनों से लेकर सतत चलती है।
साथ ही उन्होंने शुभकामनाएं आदि में अपने अमूल्य शब्द देने वाले सभी लोगों का आभार भी व्यक्त करते हुए सभी से पुस्तक पढ़ने के उपरांत अनमोल प्रतिक्रिया और सुझाव भी आमंत्रित किया है।
इसके पश्चात् रचनाएं समीक्षा के लिए प्रतीक्षित हैं, उनपर एक नजर डालना उचित है।
पुस्तक “माँ वाणी वंदना” से शुरू होकर “आरती माँ भारती की” तक कुल 108 रचनाओं का संग्रह है।
इन रचनाओं में गीत गीतिका मुक्तक वर्णपिरामिड आदि सभी रचनाएं छंदाधारित हैं सभी रचनाओं के विधान प्रदत्त हैं।
अधिकांश रचनाएं देशभक्ति की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। भारतीय अमर शहीदों को अर्पित हैं , कुछ रचनाएं चेतना का जागरण मंत्र फूंक कर देशवासियों को जगाती हैं। कुल मिलाकर लगभग सभी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम ही मुखरित हुआ है।
नि:संदेह ये रचनाएं पाठकों पर एक गहरा प्रभाव डालती हैं। इनमें भारतीय संस्कृति की चेतना के स्वर भी मुखरित हैं। कहना न होगा यदि विद्यालय के पाठ्यक्रम में ये रचनाएं स्थान पाती हैं तो निश्चित ही भावी पीढ़ी में देशभक्ति एवं राष्ट्रीय प्रेम के भाव को भरेंगी।
अशेष शुभकामनाओं सहित
डॉ ओम प्रकाश मिश्र मधुब्रत
संस्थापक/अध्यक्ष
नवोदय वैश्विक प्रज्ञान साहित्यिक मंच।