ग़ज़ल-
मझधार से ले आये हैं कश्ती निकाल के,
उम्मीद है रखोगे इसे अब सम्हाल के,,
हर एक बे खयाल को मुश्किल में डाल के,
“ग़ज़लों ने खुद पहन लिए ज़ेवर खयाल के”,,
सूरज नया उगा दिया है इनकेलाब ने,
दिन ज़ालिमों के आ ही गए हैं ज़वाल के,,
काफी बीमारियों से मिलेगी तुम्हे निजात,
पानी अगर पियोगे मियाँ तुम उबाल के,,
हमने तो रूप देखे हैं इस शह्र में बहुत,
सानी नहीं है आप के हुस्नो-जमाल के,,
क़ब्ज़े में ले लिया है गहन”अक्स”चांद को,
गर्दिश में आ गए हैं सितारे हिलाल के,,
अक्स वारसी