भगवान भागवत ही सनातन संस्कृति के जनक

 कुदरहा,बस्तीः भगवान भागवत जी ही सनातन संस्कृति के जनक है। इस ग्रंथ में 4 वेद 6 शास्त्र 18 पुराण का समावेश है। इस ग्रंथ को पढ़ने सुनने मात्र से जनमानस अपने संस्कृति को जान जाता है और सदमार्ग का अनुशरण करता है।
यह सद्विचार बृंदावन धाम से आये कथा वाचक आलोकानंद जी महाराज ने छरदही गांव मे चल रही ग्यारह दिवसीय संगीतमयी श्रीमदभगवत कथा के दूसरे दिन ब्यास पीठ से प्रवचन सत्र मे ब्यक्त किया। उन्होंने कथा को विस्तार देते हुए कहा कि जब यह संसार दुखित थकित था तब मनुष्य की पीड़ा देखकर श्री वेदव्यास जी ने 18 हजार श्लोकों में श्रीमद भागवत पुराण को लिखा और अपने पुत्र श्री शुकदेव जी अध्ययन कराया। जब कलयुग के स्थान पूछने उन्होंने जातरूप अर्थात सोने में वास दिया तो वह महाराज परिक्षित जी के मुकुट में बैठ गया। जिससे मतिभ्रम होने के कारण महाराज परिक्षित ने शमिक ऋषि के गले में सर्प डाल दिया और महाराज परिक्षित को शृंगी ऋषि ने श्राप दे दिया की सात दिन में राजा की मृत्यु हो जायेगी। तब महाराज श्री शुकदेव जी ने आकर सात दिन तक श्री मद्भागवत कथा सुनाई थी।
     कार्यक्रम में मुख्य यजमान पं मुरलीधर द्विवेदी, विध्याचल द्विवेदी, अष्टभुजा, योगेश, नरेंद्र दुबे, आनंद मिश्रा, वीरेंद्र दुबे, राम प्रकट उपाध्याय,  गंगाराम दुबे, नरसिंह प्रसाद दुबे, राधे गोस्वामी, विजली गिरी, रामगोपाल दुबे, हरि गोविंद द्विवेदी, अजय दुबे, बंटी दुबे, झारखंडे गिरी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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