ग़ज़ल
जिस दिन से हमको उनसे सरोकार हो गया।
उनकी हरिक अदा से हमें प्यार हो गया।
करना हमें है काम यही आप जो कहे।
दिल पर ज़हन पे आपका अधिकार हो गया।
ख़ुशियों में झूमते हैं कि महकी हुई फ़िज़ा।
उनको हमारा प्यार जो स्वीकार हो गया।
आंखों में भर के प्यार हमें देखते हैं वो।
देखा था हमने ख़्वाब जो साकार हो गया।
आए हैं आप जब से बहारें भी आ गईं।
उजड़ा हुआ चमन था जो गुलज़ार हो गया।
हमने हमारे दर्द का इज़हार कब किया।
फिर क्यों हमारा दर्द यूं अख़बार हो गया।
ऐ रूप एक दिन वो बुलन्दी को छुएगी।
हर फ़र्द जिस भी क़ौम का बेदार हो गया।
रूपेंद्र नाथ सिंह रूप