ग़ज़ल
गुलशन कहां जो गुल से लदी टहनियां न हों।
सावन की रुत कहां है अगर बदलियां न हों।
मुश्किल डगर पे पांव रखे क्यों भला कोई।
पकड़े डगर वो जिस पे कि दुश्वारियां न हों।
बर्बाद हो चुके हैं बहुत अब सकत नहीं।
आगे हमारी और भी बर्बादियां न हों।
भाई की चीख सुन के भी तड़पे न दिल कभी।
इतनी भी भाइयों में कभी दूरियां न हों।
अच्छे बुरे का होश भी बाक़ी नहीं रहे।
ऐसी किसी भी हाल में मदहोशियां न हों।
फूलों से तितलियों का तो रिश्ता क़दीम है।
मुमकिन कहां है फूल हो पर तितलियां न हों।
रिश्ते बहाल रूप जी होना मुहाल है।
जब सिलसिले भी बात के कुछ दरमियां न हों।
रूपेंद्र नाथ सिंह रूप