उसकी दवा है क्या जो फूलों से चोट खाए-प्रतिभा गुप्ता प्रबोधिनी

*ग़ज़ल*

जीवन का पाठ असली तो वक़्त ही पढ़ाए
लेकिन समय से पहले बिल्कुल समझ न आए

क्या है वजूद अपना,ये मुश्किलें बताती
आसान रहगुज़र तो कोई भी नाप आए

इक फूल खूबसूरत है और के चमन का
अपना नहीं है फिर भी दिल को बहुत लुभाए

कांटो के जख़्म का तो फिर भी इलाज होगा
उसकी दवा है क्या जो फूलों से चोट खाए

इक गीत है अधूरा प्यासी है मन की कोयल
तुम ही बताओ तुम बिन किस तरह गुनगुनाए

ये ज़िन्दगी है ‘प्रतिभा’ हिम्मत न हारना तुम
हर रात की सुबह है,हर दिन की शाम आए

–प्रतिभा गुप्ता ‘प्रबोधिनी’

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