हमसफ़र
आपसे मिल गई जो नजर से नजर,
उम्र भर वह मिली की मिली रह गई।
चार आंखें लड़ी थी जरा सी मगर,
उम्र भर वो लड़ी की लड़ी रह गई।
आप मगरूर हैं हम भी मशहूर हैं,
इक फ़लक इक ज़मी दोनों मजबूर हैं।
चांद बनके गगन मैं वो चमके ज़रा,
सारी शब चांदनी बन खड़ी रह गई।
जो थे अनजाने अब जाने पहचाने हैं,
जलते दीपक के वो एक परवाने हैं।
आपको मैं थोड़ा समय दे दिया,
बात आगे बढ़ी तो बड़ी रह गई।
पलके बोझल हुई होंठ हल ना सके,
एक दूजे से हम खुल के मिल ना सके।
गलियां वीरान थी आपके बिन यहां,
आज उनमें खुशी की झड़ी लग गई।
जाते-जाते ना जी भर के देखा उन्हें,
हाथ बढ़ ना सके ना ही रोका उन्हें।
आएंगे हम कसम से वो कह के गए,
अर्चना बस खड़ी की खड़ी रह गई।
अर्चना श्रीवास्तव
शब्द शिल्पी
बस्ती
उत्तर प्रदेश।