एक ग़ज़ल………
क्या कहें माहौल को,क्या आदमी को
धो रहे हैं आज हम गंगा नदी को
आप कुछ कहिए यहाँ पर सब सही है
बस ग़लत है तो सही कहना सही को
ख़ुद समुन्दर पाँव पर आकर गिरेगा
आप गर रखिए छुपाकर तिश्नगी को
सिर्फ़ ख़ामोशी महाभारत से अबतक
जन्म देती आ रही है द्रौपदी को
कौन आख़िर इन अंधेरों से लड़ेगा
सब जुटे हैं ढूँढ़ने मे रोशनी को
हरीश दरवेश