मन के भावों को सशक्त क़लम से काग़ज़ पर उकेरना है कि और नवीन आयाम देना सच्चे साहित्यकार की पहचान होती है। मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृति का तालमेल बैठा जनमानस तक प्रेरक संदेश पहुँचाना एक सच्चे सहित्य साधक का हस्ताक्षर होती है। ईश्वरीय सत्ता व मानवीय क्रिया कलाप के बीच सामंजस्य बैठाना अनूठी योग्यता है। मन में उद्वेलित हुए भाव क़लम बद्ध कर समाज तक पहुँचाने का आलौकिक कार्य कर उत्कृष्ट साहित्यकार होने का प्रमाण दिया गया है। कैफ़ी आज़मी और राहुल सांकृत्यायन की जन्मभूमि वाले आज़मगढ ज़िले के निवासी डॉ. कृष्ण कान्त मिश्र कृष्ण कमल, उन्मुक्त उड़ान मंच के मीडिया प्रभारी व नवोदय वैश्विक प्रज्ञान साहित्यिक मंच के कार्यकारी अध्यक्ष की प्रथम पद्य कृति दिव्यांजलि (काव्य संग्रह) इन सभी भावनाओं का सम्मिश्रण है।
मानद उपाधि से अलंकृत, अनेकों सम्मानों से सम्मानित, साँझा संकलन में प्रकाशित इनकी कृतियाँ, विभिन्न पत्रिकाओं के संपादक, मासिक पत्रिका नवोदय निर्झरणी के संपादक डॉ कृष्ण कान्त मिश्र कमल जी की दिव्यांजलि अपने नाम को सार्थक करती हुई भावों की दिव्य श्रृंखला।
वंदे वाणी विनायकौ से शुभारंभ हुआ दिव्यांजली का।
एक साथ वाणी विनायक की वन्दना।
दोनों की साथ-साथ करता हूँ अर्चना॥
प्रथम दोनों को पुकारता हूँ सुने मेरी कामना है।
भव्य मेरी दिव्यांजली जल्दी कर दो यही प्रार्थना है॥
सरस्वती वंदना, गुरु वंदना, माँ की वंदना, पिता की वन्दना करते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति का निर्वहन किया है। वो लम्हे बुला रहे हैं…..अति सुंदर भावाभिव्यक्ति अपने उस हसीं एहसास को अब हम जिए जा रहे हैं…
आ लौट चलें फिर से वो लम्हें बुला रहे हैं। मेरे गाँव का सरकारी स्कूल, माँ सबसे भोली है..सी सरल सहज अभिव्यक्ति के बाद तुम हो डोलो की जैसी में अपने डॉक्टर होने का प्रमाण दिया है। जिसमें ऐसीलॉक, कैल्शियम व डाइक्लो का बेहतरीन उपयोग किया गया है।
न जाने क्यों तेरी याद सताती मुझे, दिल चाहता है आज एक पैगाम दे दूँ, मन की मुराद, कितनी तमन्ना थी पहली मुलाक़ात की,
मैं कब तक बोलूँ..रचनाओं की रुमानियत देखते बनती है।
उड़त गुलाल है, श्री राम वंदना,माँ अंजनी के लाल, पिता ईश के समान, गुरु ही ज्ञान की खान, हो त्रिलोक के तुम स्वामी, देवों के देव महादेव, दुख हरते दीनानाथ, भक्ति में शक्ति जैसी रचनाओं से कवि की ईश्वर व गुरु के प्रति आस्तिकता का प्रमाण मिलता है। मनहरण घनाक्षरी, सेदोका, हाइकु, दोहा विधाओं में भी लिखा गया है जो कवि की विभिन विधाओं के प्रति सार्थक प्रेम भी उजागर करता है। मुझे भी अपने में शामिल करो न, मैं दिया तुम बाती बनो की उल्लेखनीय पंक्तियाँ
जीवन में साथ तुम्हारा हो,
भले ही कैसा भी नज़ारा हो,
एक दूजे के लिए जिएँ,
बस ऐसा साथ हमारा हो।
अपने जीवन साथी के प्रति प्रेम भाव को बहुत सुंदर ढंग से दर्शाया है।
तुम्हारे जाने के बाद, तेरे मुस्कुराने का ये असर हुआ, सीख रहा हूँ इश्क़ में क़ामिल होना, मुझे तो तेरा ही सहारा था, मन बहुत उदास है, आख़िरी पन्ना, मैं दर बदर भटकता रहा, तुम्हें भुलाए कैसे, शब भर हम यूँ जागते रहे, जैसी रचनाओं ने दिव्यांजलि में विभिन्न रंगों का समावेश कर दिया।
माँ अब चूल्हा कौन जलाएगा में एक बेटी का दर्द दर्शाया गया है। जो मायका छोड़कर ससुराल जा रही है ….. अति सुंदर मार्मिक पंक्तियाँ
बाबुल तेरे आंगन को छोड़ूँ कैसे
जिसमें खेली हूँ उससे मुख मोड़ूँ कैसे
जब भी ये दिल उदास होता है, एक पाती तेरे नाम,अधूरे ख़्वाब,एक कहानी लिखूँ, मुझे भी करना है प्यार,दगा देकर रोए, अपनी दुनिया में मुझे भी शामिल करो ना, मेरे मन में क्या है उसे को पता है, सबकी यही कहानी है, आज इतनी दूर उसे क्यों पाया है, तुम्हें क्या पता..जैसी रचनाएँ परिस्थितियों के अनुसार कवि के बदलते मनोभावों का प्रमाण हैं।
घर, उजाला, उमड़ घुमड कर आए बादल, आया सावन झूम के, रक्षाबंधन ये धागा नहीं स्नेह की डोर है, पुतले जलाने से क्या फ़ायदा, ईद दिवाली के साथ मने,मैं दीपक हूँ, बुजुर्गों की ख़ूबसूरत पनाह थी, पौत्र बिना दादा अधूरे हैं,काश़ एक बार फिर से छोटे हो जाते, धिक्कार है नई पीढ़ी को भी मानवीय रिश्तों की नाज़ुक डोर को अपनी क़लम से बहुत ही सुंदर ढंग से पिरोया है॥
ख़ूबसूरत पंक्तियाँ
काश़ बादशाहत वाले दिन फिर से वापस आ जाते,
हम बड़े होकर भी एक बार फिर से छोटे हो जाते।
कुछ कविताएँ हिन्द और हिन्दी के उत्थान के लिए..
हमारी आन है हिन्दी हमारी शान है हिन्दी
हिंदुस्तानियों की एक अलग पहचान है हिन्दी
सभी भाषाओं में सबसे प्यारी भाषा है
किसी की जान है तो किसी का अभिमान है हिन्दी।
काश़ हिंदी राष्ट्रीय भाषा बनती, हिन्दी की हर रोज़ महता, हिन्दी है हमारी प्यारी भाषा, यही है सबका हिन्दोस्तान..इन कविताओं को रचकर कवि ने अपने हिंदी प्रेम को उजागर कर श्रोताओं के लिए एक नया मापदंड रखा है।
आओ आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाएँ…देश प्रेम की अनूठी कविता से काव्य संग्रह ऊंचाइयों को छू रहा है।
गौरैया रानी, दशरथ माँझी, साइबर क्राइम, नारी, बेटी बोझ नहीं सम्मान है, मैं और मेरे अरमान, चिकित्सक धर्म निभाते, खोया खोया चाँद है, पापा मैं क्या लिखूँ, आपकी जज़्बात को कभी जान न पाए, माँ तुझे पूजा है, माँ तेरी महिमा मंडन कैसे गाऊं, उफ़ हाय रे गर्मी, पिता जज़्बात नहीं दिखाता है, बसंत ऋतु, मधुमास राजन, ठंड का मौसम, मोबाइलों ने ग़ुलाम बना दिया है, बूढ़ा बरगद, हरियाली जैसे अनूठे विषय भी अछूते व अनदेखे नहीं रहे कवि की पैनी नज़र से। अंत में चार मुक्तकों से दिव्यांजली में अंतिम आहुति डाली गई। अंतिम मुक्तक आपकी नज़र
हमने भी पहले दोस्ती फिर प्यार किया है,
कई लोगों के नज़रों को नज़रअंदाज़ किया है,
ये दिल मेरा उन्हें ही अब माफ़ करता है,
जो आज भी मुझसे अदावत बेइंतिहा रखता है।
कुल मिलाकर ८५ रचनाओं को समेटे दिव्यांजलि पुस्तक आपको आल्हादित करेगी ऐसा मेरा विश्वास है। यह संकलन कवि के साहित्यिक उपलब्धियों में से एक है।इनकी साहित्यिक यात्रा निरंतर ऊंचाइयों की ओर अग्रसर रहे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं डॉ कृष्ण कान्त मिश्र कमल जी को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ।
डॉ दवीना अमर ठकराल” देविका “
संस्थापिका/ अध्यक्षा
उन्मुक्त उड़ान मंच
आपका अपना साहित्यिक मंच
हिसार (हरियाणा)
९८१३४२९७९०