आर्य समाज से प्रभावित होकर मुंशीराम बने श्रद्धानंद, देश के लिए किया सर्वस्व अर्पण

बस्ती – शुद्धि आन्दोलन, दलितोद्धार आन्दोलन , गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली के प्रणेता, स्वतंत्रता सेनानी, तपोनिष्ठ संन्यासी, अमरहुत्मा स्वामी श्रद्धानन्द के९८ वें बलिदान दिवस के अवसर पर स्वामी दयानन्द विद्यालय और आर्य वीर दल बस्ती ने शान्ति यज्ञ करते हुए देश के लिए उनके योगदान को याद किया। यज्ञ कराते हुए ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बस्ती ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना करके वैदिक संस्कृति के ज्ञान को नवजीवन प्रदान किया है। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति भी आर्य समाज को दान कर दी थी। आज उन्हें पूरा देश याद कर रहा है। आज लोग ईसा को याद करके 25 दिसंबर को अपने गौरव को भूल रहे हैं जबकि स्वामी श्रद्धानंद ने अपनी बेटी को जब ईसामसीह का गुणगान करते हुए सुना तो उन्होंने वहां से हटाकर गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की। बताया कि विश्व के इतिहास में पहली बार किसी आर्य संन्यासी ने वेदमंत्र से प्रारम्भ करके जामा मस्जिद के मीनार से व्याख्यान दिया, वे स्वामी श्रद्धानन्द जी ही थे। तात्कालीन राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र के धुरंधर जिनके आगे अपना सिर झुकाने में गौरव समझते थे। महात्मा गांधी जिनको ‘बड़ा भाई’ कहकर संबोधित करते थे। मौलाना मोहम्मद अली ने जिनके बारे में कहा- ‘गोरखों की संगीनों के सामने अपनी छाती खोल देने वाले उस बहादुर देशप्रेमी का चित्र अपनी नजर के सामने रखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। प्रधानाध्यापक आदित्यनारायण गिरि ने बताया कि ३० मार्च १९१९ को दिल्ली में रोलेक्ट एक्ट के विरोध में होने वाले प्रदर्शन का नेतृत्त्व महात्मा गांधी को करना था, महात्माजी को दिल्ली आते हुए पलवल के स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय स्वामी श्रद्धानन्द दिल्ली के हिन्दू मुसलमानों के एकछत्र नेता थे। स्वामीजी के नेतृत्त्व में जब हजारों प्रदर्शनकारियों की भीड़ चांदनी चौक के पास पहुंची तो पुलिस ने रास्ता रोक लिया। गोरखे सैनिकों ने अपनी पोजिशन ले ली। ऐसी स्थिति में यदि स्वामी श्रद्धानन्द उस भीड़ के नेता न होते तो संभवतः जंलियावाला काण्ड १४ दिन पहले दिल्ली में ही हो गया होता। एक पल की चूक हजारों लोगों की मौत का कारण बन सकती थी। स्वामी श्रद्धानन्द ने पहले तो कहा था- यदि आपकी ओर से कोई गड़बड़ न हुई तो पूरी भीड़ को संयमित रखने की जिम्मेवारी मैं लेता हूँ।’ जब गोरखे नरसंहार करने पर उतारू हो गए तो श्रद्धानन्द अपना सीना खोलकर आगे बढ़े- शांत निस्तब्ध वातावरण में उनकी धीर गंभीर ध्वनि गूंजी-‘निहत्थी जनता पर गोली चलाने से क्या लाभ? मेरी छाती खुली है। हिम्मत है तो गोली चलाओ।’ कुछ क्षण तक संन्यासी की छाती और गोरखों की संगीनों का सामना होता रहा। भीड़ सांस रोके खड़ी थी। अचानक एक गोरे अधिकारी ने स्थिति की नाजुकता को समझा, और गोरखों को पीछे हटने का आदेश दिया। एक भयंकर नरसंहार होते होते रह गया पर– देशभक्तों के हृदयों में संन्यासी की निर्भीकता और वीरता की धाक जम गई। इस अवसर पर बच्चों ने भी उनको अपनी गीत कविताओं के माध्यम से याद किया। इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि यदि किसी को श्रद्धा की व्याख्या समझनी हो तो वह श्रद्धानन्द के जीवन का अध्ययन करे। जैसे दयानन्द के मिलन ने उनका कायापलट कर दिया, वैसे ही श्रद्धानन्द के जीवन को समझने से भी कितने ही आत्मविमुग्ध लोगों का कायापलट हो सकता है। आज के दिन ही एक मत के अंधे व्यक्ति अब्दुल रशीद ने रुग्णावस्था में मिलने के बहाने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। सभी ने उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।