अनुराग लक्ष्य, 7 नवंबर
मुम्बई संवाददाता।
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ।
देश की आज़ादी से लेकर आज तक अखबारों की जो भूमिका रही है, वह किसी से भी छुपी नहीं है। आज हम कितने भी हाईटेक क्यों न हो गए हों लेकिन समाचार पत्रों की भूमिका जो आज समाज में है, उससे इनकार नहीं कर सकते। यहां तक कि आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए पल भर में देश विदेश की खबरों से अवगत हो जाते हैं। मगर जब तक हम समाचार पत्रों और अखबारों को नहीं पढ़ लेते, पूरी जानकारी हम तक नहीं पहुंच पाती। यही वजह है कि आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आंधी में भी अखबार उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जितना कि देश की आज़ादी में जो भूमिका अखबारों की हुआ करती थी। इसी सच्चाई और पत्रकारिता के सम्मान में मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी आज अपने कुछ बेश कीमती कलाम लेकर आपसे रूबरू हो रह हूं,,,,
1/ इस दौर ए इंकलाब में आओ कलम के साथ
दुनिया के हर एक गोशे में छाओ कलम के साथ ।
हो सामने सत्ता कोई या जुर्म का पहाड़
हर एक को आईना दिखाओ कलम के साथ ।।
2/ ज़िंदगी की जंग में या मौत की ललकार में
जो लिखा हो सत्य होना चाहिए अखबार में ।
मैं तो यह हरगिज़ गवारा कर नहीं सकता कभी
तुम कलम को बेचकर जाओ किसी दरबार में ।
3/ जिसकी ख़बर ने आज कई राज़ हैं खोले
जलता कहीं देखा वही अख़बार तो नहीं।
कल शहर में इंसान जो मारा गया सलीम
मेरी तरह पेशे से पत्रकार तो नहीं ।।
4/ आ गई चलते चलते कहां ज़िंदगी
थी जहां मेरी मंज़िल वहां ज़िंदगी ।
मेरे हाथों में दे सिर्फ मेरा कलम
रखले तू पास तीर ओ कमां ज़िंदगी ।।
5/ अच्छा हुआ इस मुल्क में अख़बार दे दिया
हम जैसे मुफ्लिसों का मददगार दे दिया ।
इतना ही नहीं आईनों की शक्ल में सलीम
हर गोशे गोशे में इक कलमकार दे दिया ।।
,,,,,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,