ईश्वर से दूरी क्यो?-आचार्य सुरेश जोशी

🪔 ओ३म् 🪔ईश्वर से दूरी क्यो?

ओ३म् तद्विष्णो: परमं पदं सदा पश्यन्ति पश्यन्ति सूरय:।दिवीव चक्षुराततम्।।सामवेद-१८/४।।
🪷 मंत्र का पदार्थ 🪷
सूरय:= विद्वान जन 🍁 विष्णो:= सर्वव्यापक परमात्मा के 🍁 तत= उस 🍁 परमम= अति सूक्ष्म 🍁 पदम = स्वरुप को 🍁सदा = हमेशा 🍁 पश्यन्ति = अनुभव करते हैं 🍁 आततम् = फैली हुई 🍁 चक्षु = आंख 🍁 दिवि = आकाश में सब कुछ देखने योग्य दृश्य को देखती है।
🌻 वेद मंत्र की व्याख्या 🌻
जैंसे हमारी स्थूल आंखें दृश्य पदार्थों को साक्षात ही देखती हैं वैंसे ही ज्ञानियों की आत्मा अदृश्य परमात्मा के स्वरुप का भी साक्षात अनुभव करते हैं। इस पावन वेद मंत्र में 👁️ द्रष्टांत व द्राष्टांत दोनों चक्षु 👁️ का है।
🌼 आओ!इसका पता लगायें?🌼
इतना सुंदर,अलौकिक व स्पष्ट वर्णन परमात्मा का इस वेद मंत्र में है फिर भी आज की युवा पीढ़ी अध्यात्म से उदासीन व भौतिक चकाचौंध की ओर ही क्यों आकर्षित हो रही है।इस पर गंभीरता से विचार करने पर मुख्य ६ (छ:) बातें संज्ञान में आती हैं।
[१] 🌹 माता-पिता भक्ति हीन हैं🌹
मानव का जन्म परिवार में होता है।माता पिता अभिभावक बच्चों के आदर्श होते हैं।अगर वो स्वयं उपासना नहीं करते वा कराते तो बच्चे कैंसे सीखेंगे! आजकल बच्चे खूब नाचते हैं इसका मतलब जाने -अनजाने उनमें नाचने-गाने के संस्कार *घर व स्कूल* दोनों जगह से आ रहे हैं।
[२]🌹 ईश्वर की गलत परिभाषा🌹
ईश्वर हमें प्रतिक्षण देख रहा है।सुन रहा है।जान रहा है।हमारे भीतर बैठकर हमें न सुख देता है,न दु:ख देता है।हमारे कर्मों का न्याय पूर्वक फल दे रहा है।ईश्वर हमारी गल्तियों को कभी माफ नहीं करता। वो निराकार ,अजन्मा,सर्वशक्तिमान,हर जगह विद्यमान है।यदि ये शिक्षा व संस्कार बच्चों को देते तो हमारा घर ही मंदिर बन जाता। हमें किसी बाहर के मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं रह जाती। जिनके घर में भोजनालय नहीं होता उनके बच्चे होटलों में खाते हैं।जिनका घर मंदिर नहीं होता वो ही बाहर मंदिर खोजते हैं।
[३] 🌹 केवल ईश्वर ही ईश्वर है।🌹
कुछ लोग अतिवादी हैं वो कहते हैं केवल 🦩 ब्रह्म ही ब्रह्म है बांकी सब भ्रम🦩 है।इस कारण भी लोग ईश्वर से उदासीन हो रहे हैं।जबकि सत्यता यह है कि कोई भी वस्तु अकेले होने पर बेकार होती है।चाहे वो डाक्टर हो, इंसपेक्टर हो, ट्रेक्टर हो,वेटर हो या टमाटर ।एक डाक्टर है उसके पास न दवा हो,न औजार उसका होना न होने के बराबर है।मान लो!दवा ,औजार हो मगर रोगी न हो तो भी बेकार है। सिद्धांत यह है कि तीन का होना जरुरी है।जैंसे डाक्टर,रोगी ,दवा जरूरी है इसी तरह ईश्वर ,जीव,प्रकृति तीनों होंगे तभी लोग ईश्वर पर विश्वास कर सकेंगे!
🏵️ सार तत्व की बात 🏵️
प्रभू के साथ होने का यकीं दिल को
मुश्किल से होता है।
वरना जब प्रभू साथ हो तो बेकसी कैंसी??
उक्त वेद विचार आर्य समाज आवास विकास 🌸 उपासना स्थल 🌸 पर चल रही वेद कथा के प्रथम दिवस पर श्रोताओं को दिए गये !
बाराबंकी से पधारी वैदिक विदुषी पंडिता रुक्मिणी जी ने अपने भजनों द्वारा लोगों को *पंच-महायज्ञ* प्रतिदिन करने की प्रेरणा दी।स्थानीय भजनोपदेशक सत्येंद्र वर्मा जी ने बताया कि भगवान श्रीराम प्रतिदिन यज्ञ करते थे।हमे भी यज्ञ करते रहना चाहिए।हरिहर मुनि ने वैदिक यज्ञ कराकर कर *वेद कथा का शुभारंभ* कराया!
आचार्य सुरेश वैदिक प्रवक्ता
*वर्तमान कार्यालय*
वैदिक उपासना स्थल आवास विकास
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जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश
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