देशबंधुओं और सैनिकों द्वारा यमराज से चंद मोहलत के लिए की गई प्रार्थना स्वरूप मेरी कविता आपकी सेवा में–
“दस्तक ना दो”
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।
हैं इंसानियत के तार झीने,
और फट रहे मां के बसन।
अब मनुजता की सुई से,
जरा सिल तो दूं तो चलूं।
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।।१
मां के दामन जीर्ण देखो,
और पथरा गयीं हैं वेदनायें।
उस दर्द का तुम ज्वार देखो,
हैं अश्रु की अगनित धारायें।
तनिक ठहरो आवाज न दो,
अश्रुओं को पोंछ दूं तो चलूं।
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।।२
देखो रात्रि अब है जागती,
और है सिसकता दोपहर।
कैसा अनुर्वर हो गया है,
जो था कभी उर्वर प्रखर।
फिर मात्रृ का श्रृंगार कर,
इसको हंसा दूं तो चलूं।
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।।३
देखो सूनी हैं अमराईयां,
गुलशन भी अब बीरान हैं।
नासाज़ कलियां हो गयीं,
पुष्पों का खिलना बंद है।
चंद भ्रमरों को बुला कर,
चहका चमन दूं तो चलूं।
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।।४
बेताब देखो हर कोई और,
हर पिंड देखो है भर भरा।
चेहरे का देखो भाव बीता,
और उत्साह जैसे अधमरा।
इन शून्य आंखों में जरा,
कुछ सपने जगा दूं तो चलूं।
तुम द्वार पर दस्तक ना दो,
कुछ काम कर लूं तो चलूं।।५
बाल कृष्ण मिश्र “कृष्ण”
बूंदी राजस्थान
०३.०९.२०२४